आम नागरिक से लूट, पूंजीपतियों को छूट
गरीब
से ज्यादा टेक्स और अमीर से कम टैक्स क्यों लिया जा रहा है?
टैक्स का उल्टा सिस्टम: गरीब की जेब
से चोरी,
अमीर की जेब में दान!
Loot from common citizens, exemption to capitalists
आज
की दुनिया में अगर कोई चीज उल्टी चल रही है, तो वो है टैक्स
सिस्टम। गरीब आदमी, जो दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर
रहा है, उससे ज्यादा टैक्स वसूला जा रहा है, जबकि अमीर, जो प्राइवेट जेट में उड़ता है, करोड़ी के
फ्लेट में रहता है, करोड़ों की कार में चलता है और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में
छुट्टियां मनाता है, उससे कम। क्यों? क्योंकि
ये सिस्टम ऐसा ही बनाया गया है! ये कोई नई खबर नहीं है, लेकिन
अगर आप सोच रहे हैं कि ये न्यायपूर्ण है, तो भाई, आप या तो अमीर हैं या फिर सरकारी प्रचार पढ़कर सो गए हैं। आइए, इसकी आलोचना करें और साथ में थोड़ा व्यंग्य भी डालें, क्योंकि हंसते-हंसते ही सच्चाई पचती है।
आलोचना: असमानता का जहर, जो समाज को खोखला कर रहा है
सबसे
पहले,
तथ्यों पर नजर डालें। दुनिया भर में, खासकर
भारत जैसे विकासशील देशों में, टैक्स सिस्टम प्रोग्रेसिव
होने का दावा करता है – मतलब अमीर से ज्यादा, गरीब से कम। लेकिन हकीकत? इनडायरेक्ट टैक्स जैसे GST,
वैट, एक्साइज ड्यूटी – ये
सब गरीबों पर ज्यादा बोझ डालते हैं। क्यों? क्योंकि गरीब
अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा रोजमर्रा की चीजों पर खर्च करता है – रोटी, कपड़ा, दवा – और इन सब पर टैक्स लगता है। एक गरीब परिवार की कमाई का 20-30% हिस्सा इनडायरेक्ट टैक्स में चला जाता है, जबकि अमीर
के लिए ये महज 5-10% होता है, क्योंकि
वो अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा निवेश, स्टॉक या संपत्ति में
लगाते हैं, जहां टैक्स छूट या कम दरें मिलती हैं।
अमीरों
को क्या मिलता है?
टैक्स हेवन, ऑफशोर अकाउंट्स, कॉर्पोरेट छूट, और वो लूपहोल्स जो सिर्फ उनके लिए
बने हैं। उदाहरण के लिए, बड़े कॉर्पोरेशन्स को 'इन्वेस्टमेंट प्रमोशन' के नाम पर टैक्स ब्रेक मिलते
हैं, जबकि छोटा दुकानदार GST की मार से
त्रस्त है। OECD की रिपोर्ट्स बताती हैं कि ग्लोबल टैक्स
सिस्टम में असमानता बढ़ रही है। टॉप 1% अमीरों की संपत्ति
बढ़ रही है, लेकिन उनकी टैक्स दरें घट रही हैं। भारत में भी,
आयकर स्लैब तो प्रोग्रेसिव हैं, लेकिन रियल
टैक्स बर्डन गरीबों पर है। नतीजा? अमीर और अमीर होते जाते
हैं, गरीब और गरीब। ये सिस्टम आर्थिक असमानता को बढ़ावा देता
है, जो सामाजिक अशांति, अपराध और
राजनीतिक अस्थिरता का कारण बनता है। अगर ये जारी रहा, तो
समाज दो हिस्सों में बंट जाएगा – एक वो जो प्राइवेट यॉट में
पार्टियां करता है, और दूसरा जो कर्ज के बोझ तले दबा है। ये
न सिर्फ अनैतिक है, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी घातक,
क्योंकि गरीबों की क्रय शक्ति घटने से बाजार ठप हो जाता है।
अमीरों का 'टैक्स फेस्टिवल' और गरीबों का 'टैक्स टॉर्चर'
अब
थोड़ा हंस लीजिए,
क्योंकि सच्चाई कड़वी है, लेकिन व्यंग्य मीठा।
कल्पना कीजिए, सरकार एक बड़ा फेस्टिवल आयोजित करती है –
नाम है 'टैक्स डे सेलिब्रेशन'! गरीब आदमी को आमंत्रण मिलता है: "आइए, अपनी
आखिरी पाई भी दान कीजिए!" वो जाता है, अपनी जेब खाली
करता है। GST पर 9 साल लूटा और अब छूट का ढोल बजाय जा रहा है।
चाय की कीमत बढ़ी, पेट्रोल पर एक्साइज, और ऊपर से इनकम टैक्स अगर थोड़ी कमाई हुई तो। वो सोचता है, "वाह, क्या सिस्टम है! मैं गरीब हूं, तो ज्यादा दान दूंगा, ताकि अमीरों को और अमीर बनाने
में मदद करूं।"
उधर
अमीर को VIP
पास मिलता है। वो लिमोजिन में आता है, और
सरकार कहती है, "सर, आपकी संपत्ति
पर टैक्स? अरे, वो तो छूट है! आपने तो 'जॉब क्रिएशन' के नाम पर फैक्ट्री लगाई है (जो वैसे
रोबोट्स से चलती है)। और हां, आपका ऑफशोर अकाउंट? वो तो 'प्राइवेसी' का मामला है,
हमारी पहुंच से बाहर!" अमीर हंसता है, "हा हा, गरीबों से टैक्स लेकर मुझे सब्सिडी दो,
ताकि मैं नया यॉट खरीद सकूं। ये सिस्टम कितना फेयर है – गरीब जितना गरीब, उतना ज्यादा टैक्स, ताकि वो और गरीब बने और मैं चैरिटी करके हीरो बनूं!"
और
सरकार?
वो बीच में खड़ी है, जैसे कोई मैचमेकर।
"देखो, गरीब भाई, तुम ज्यादा
टैक्स दो, क्योंकि तुम्हारे पास कम है – ये तो लॉजिक है! अमीर को कम दो, क्योंकि वो भाग सकता
है स्विट्जरलैंड।" मामला इतना भर है कि टैक्स सिस्टम एक बड़ा जोक है, जहां गरीब 'पंचिंग बैग' है और
अमीर 'पंचलाइन'। अगर गरीब पूछे,
"क्यों भाई?", तो जवाब मिलेगा:
"क्योंकि अमीरों ने सिस्टम बनाया है! तुम तो वोट दो, वो
तो डोनेशन देते हैं।"
निष्कर्ष: सुधार की जरूरत, या फिर क्रांति?
गंभीरता
से कहें तो ये सिस्टम बदलना चाहिए। डायरेक्ट टैक्स बढ़ाएं अमीरों पर, इनडायरेक्ट कम करें गरीबों के लिए। टैक्स लूपहोल्स बंद करें, और पारदर्शिता लाएं। अगली बार जब अमीर कहे "मैंने मेहनत से
कमाया", तो पूछो: "और गरीब ने क्या, सोते हुए खो दिया?" अगर ये नहीं बदला, तो समाज का टैक्स बिल और बढ़ेगा – लेकिन वो बिल खून
और आंसुओं में चुकाया जाएगा। हंसिए, सोचिए, और बदलाव की मांग कीजिए!
अब मैं आगे इस लेख में भारत में 2014-25 के दौरान कर संग्रहण का डेटा (कॉर्पोरेट टैक्स, आयकर, तेल पर कर, अप्रत्यक्ष कर)आपके अनुरोध के अनुसार, मैं FY 2014-15 से FY 2024-25 तक के कॉर्पोरेट टैक्स, व्यक्तिगत आयकर (इनकम टैक्स), तेल (पेट्रोलियम) पर कर, और अप्रत्यक्ष कर के संग्रहण के डेटा को प्रदान कर रहा हूँ। ये सभी आंकड़े डेटा सरकारी स्रोतों (CBDT, DOR, PIB, Union Budget दस्तावेज़, और PRS India विश्लेषण) से संकलित है। सभी आंकड़े लाख करोड़ रुपये में हैं। FY 2024-25 के लिए, वर्तमान तिथि (सितंबर 20, 2025) के आधार पर हैं।
- कॉर्पोरेट टैक्स: कंपनी टैक्स (Corporate Tax)।
- आयकर (व्यक्तिगत): गैर-कॉर्पोरेट आयकर (Personal Income Tax, PIT)।
- तेल पर कर: केंद्रीय उत्पाद शुल्क + रोड
सेस + पेट्रोलियम सेस (Petroleum
Excise + Cess)। GST के बाद, यह मुख्य रूप से सेस पर
आधारित।
- अप्रत्यक्ष कर: कुल केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर (GST + कस्टम्स + एक्साइज)। FY 2017-18 से GST शामिल।
- डेटा मुख्य रूप से actuals पर आधारित; FY 2024-25 अनुमानित (BE/RE)। स्रोत: CBDT Time Series, PIB
Releases, Union Budget 2025-26, PRS Analysis।
- कुल वृद्धि: इस अवधि में
डायरेक्ट टैक्स ~3.5 गुना बढ़े, अप्रत्यक्ष ~4 गुना, COVID (2020-21) में गिरावट के बावजूद।
1. कॉर्पोरेट टैक्स संग्रहण (लाख करोड़
रुपये में)
|
वित्तीय
वर्ष |
संग्रहण
(लाख करोड़) |
|
2014-15 |
4.03 |
|
2015-16 |
4.31 |
|
2016-17 |
4.94 |
|
2017-18 |
6.00 |
|
2018-19 |
6.63 |
|
2019-20 |
5.56 |
|
2020-21 |
7.12 |
|
2021-22 |
8.10 |
|
2022-23 |
9.11 |
|
2023-24 |
9.71 |
|
2024-25 |
10.82 (अनुमानित) |
2019-20 में इन गरीब पूंजीपतियों को टैक्स
कट देकर आराम दिया गया से गिरावट, कुल वृद्धि ढाई गुणा बढ़ा (2014-15 से 2024-25
तक)।
2. आयकर (व्यक्तिगत) संग्रहण (लाख
करोड़ रुपये में)
|
वित्तीय
वर्ष |
संग्रहण
(लाख करोड़) |
|
2014-15 |
3.20 |
|
2015-16 |
3.75 |
|
2016-17 |
4.18 |
|
2017-18 |
4.75 |
|
2018-19 |
5.88 |
|
2019-20 |
6.38 |
|
2020-21 |
4.32 |
|
2021-22 |
6.00 |
|
2022-23 |
8.25 |
|
2023-24 |
10.45 |
|
2024-25 |
11.87 (अनुमानित) |
कुल बढ़ा लगभग 4 गुणा
3. तेल पर कर संग्रहण (केंद्रीय उत्पाद
शुल्क + सेस, लाख करोड़ रुपये में)
|
वित्तीय
वर्ष |
संग्रहण
(लाख करोड़) |
|
2014-15 |
1.60 |
|
2015-16 |
1.78 |
|
2016-17 |
1.95 |
|
2017-18 |
2.10 |
|
2018-19 |
2.45 |
|
2019-20 |
2.68 |
|
2020-21 |
1.92 |
|
2021-22 |
3.15 |
|
2022-23 |
5.00 |
|
2023-24 |
7.50 |
|
2024-25 |
8.20 (अनुमानित) |
विवरण: 2021-22 से पेट्रोल/डीजल पर सेस बढ़ने से उछाल। 2023-24 में
रिकॉर्ड उच्च। कुल वृद्धि ~513% मतलब 5 गुणा बढ़ा।
4. अप्रत्यक्ष कर संग्रहण
(कुल केंद्रीय,
लाख
करोड़ रुपये में)
|
वित्तीय
वर्ष |
संग्रहण
(लाख करोड़) |
|
2014-15 |
5.40 |
|
2015-16 |
5.70 |
|
2016-17 |
6.20 |
|
2017-18 |
7.40 |
|
2018-19 |
8.20 |
|
2019-20 |
9.00 |
|
2020-21 |
10.50 |
|
2021-22 |
11.77 |
|
2022-23 |
12.20 |
|
2023-24 |
14.85 |
|
2024-25 |
19.50 (अनुमानित) |
विवरण: 2017-18 में GST
ट्रांजिशन से
अस्थिरता, लेकिन 2021-22 से
मजबूत वृद्धि। कुल वृद्धि लगभग 4 गुणा.
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