भारत में ब्राह्मणवादी
मीडिया का साम्प्रदायिकीकरण?
भारत, दुनिया
का सबसे बड़ा लोकतंत्र, अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन
हाल के वर्षों में मीडिया का साम्प्रदायिकीकरण (communalization)
इस विविधता को
धार्मिक विभाजन की चपेट में ले आया है। साम्प्रदायिकीकरण से तात्पर्य मीडिया की उस
प्रवृत्ति से है, जिसमें समाचारों को हिंदू-मुस्लिम
या अन्य धार्मिक आधार पर प्रस्तुत किया जाता है,
जिससे पूर्वाग्रह, हेट
स्पीच और साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिलता है। 2014 से 2025 तक, विशेषकर
नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान, यह प्रक्रिया तेज हुई है, जहाँ
मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स धार्मिक ध्रुवीकरण का माध्यम बन गए
हैं। यह न केवल पत्रकारिता के सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि
लोकतंत्र की आधारशिला—सहिष्णुता और बहुलवाद—को
भी कमजोर कर रहा है। यह प्रक्रिया मीडिया के "गोदी मीडिया" (सरकारी
पक्षधर) रूपांतरण का परिणाम है, जो सत्ता की वैचारिक एजेंडे को
बढ़ावा देता है।
ऐतिहासिक
संदर्भ और वृद्धि का पैटर्न
भारतीय मीडिया का साम्प्रदायिकीकरण नया नहीं है—1990 के दशक में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान टीवी चैनलों ने हिंदू-मुस्लिम तनाव को बढ़ावा दिया था। लेकिन 2014 के बाद यह व्यवस्थित हो गया। Reuters Institute for the Study of Journalism की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मीडिया स्वामित्व पूंजीपतियों के अधीन अत्यधिक केंद्रित हो गया है, जहाँ मुकेश अंबानी (रिलायंस इंडस्ट्रीज) और गौतम अडानी जैसे उद्योगपति 70 से अधिक मीडिया आउटलेट्स नियंत्रित करते हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं। NDTV के अधिग्रहण (2022) के बाद मुख्यधारा मीडिया में बहुलवाद समाप्त हो गया, और "गोदी मीडिया" का उदय हुआ, जो हिंदुत्व एजेंडे को प्रचारित करता है। 2024-2025 में यह चरम पर पहुँचा। CNN की फरवरी 2025 रिपोर्ट के अनुसार, धार्मिक अल्पसंख्यकों (मुख्यतः मुसलमानों और ईसाइयों) के खिलाफ हेट स्पीच की घटनाएँ 74% बढ़कर 1,165 हो गईं, जिनमें से 98% मुसलमानों को लक्षित थीं। India Hate Lab की रिपोर्ट (फरवरी 2025) बताती है कि BJP ने 30% हेट स्पीच इवेंट्स आयोजित किए, जो 2023 से 6 गुना अधिक है, और BJP नेताओं ने 452 हेट स्पीच दिए, जो 350% वृद्धि दर्शाती है। यह मीडिया कवरेज से जुड़ा है, जहाँ Zee News जैसे चैनलों ने मार्च 2025 में बुदौन डबल मर्डर केस को "तालीबानी स्टाइल मर्डर" कहकर मुसलमानों को निशाना बनाया। सोशल मीडिया पर यह और खतरनाक है। Report on Social Media and Hate Speech in India (फरवरी 2025) के अनुसार, 98.4% हेट स्पीच वीडियो फेसबुक पर बने रहे, और 2025 में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 806 मिलियन होने से धार्मिक पूर्वाग्रह वाली सामग्री वायरल हो रही है। X (पूर्व ट्विटर) पर हालिया चर्चाओं में, जैसे एक पोस्ट में "मीडिया कम्युनलाइजेशन ने ईद कवरेज को कम किया" कहा गया, जो धार्मिक पूर्वाग्रह की पुष्टि करता है।
मीडिया के
साम्प्रदायिकीकरण के क्या कारण हैं?
यह
प्रक्रिया सत्ता के वैचारिक एजेंडे से जुड़ी है। RSF
की World Press Freedom Index 2025 में भारत 151वें स्थान पर है, जहाँ
राजनीतिक पूर्वाग्रह स्कोर 24.30 (155वाँ रैंक) है। रिपोर्ट बताती है कि BJP सरकार
ने मीडिया को नियंत्रित करने के लिए नई कानून (2023) बनाए, जो
सेंसरशिप और निगरानी के साधन हैं। HRW
की World Report 2025 में उल्लेख है कि जनवरी 2025 में हिंदुत्व
वॉच और इंडिया हेट लैब जैसी वेबसाइट्स ब्लॉक की गईं,
जो धार्मिक हिंसा
को डॉक्यूमेंट करती हैं। Al Jazeera
की सितंबर 2025
रिपोर्ट के अनुसार, सेंसरशिप नियमों का विस्तार कर जिला
अधिकारी सोशल मीडिया पोस्ट हटा सकते हैं,
जो धार्मिक
सामग्री को प्रभावित करता है।
सोशल
मीडिया पर Nature जर्नल की मार्च 2025 स्टडी बताती है
कि हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़े इको चेम्बर्स ने कट्टरता को बढ़ावा दिया। CJP की
जून 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में हेट क्राइम्स में वृद्धि
हुई, और मीडिया ने इन्हें धार्मिक आधार पर रिपोर्ट
किया। The Hindu की मार्च 2025 रिपोर्ट में कहा गया
कि 2018 से 95% इंटरनेट शटडाउन साम्प्रदायिक हिंसा से जुड़े हैं, और
मीडिया की पूर्वाग्रही कवरेज ने इन्हें उकसाया।
साम्प्रदायिकीकरण
के प्रभाव:-
मीडिया का
यह रूपांतरण पत्रकारिता को "प्रोपगैंडा मशीन" में बदल रहा है। CSSS की
जनवरी 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में साम्प्रदायिक दंगों में
84% वृद्धि हुई (59 दंगे, 32 से अधिक), और
49 दंगे BJP शासित राज्यों में हुए। यह मीडिया
की भूमिका से जुड़ा है, जहाँ Zee News जैसे चैनलों ने अपराधों को "तालीबानी
स्टाइल" कहकर मुसलमानों को निशाना बनाया। परिणामस्वरूप, लोकतंत्र
कमजोर हो रहा है—V-Dem रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत
"electoral autocracy"
की ओर बढ़ रहा है।
मीडिया का यह पूर्वाग्रह सत्ता के हितों को साधता है। RSF रिपोर्ट
बताती है कि राज्य रेडियो पर न्यूज का एकाधिकार रखता है, और
निजी चैनल BJP से जुड़े उद्योगपतियों के नियंत्रण
में हैं। इससे स्वतंत्र पत्रकारिता समाप्त हो रही है—पत्रकार
यूट्यूब पर चले गए, जहाँ वे "मीडिया बायस और
कम्युनलाइजेशन" पर बोलते हैं। X
पर चर्चाओं में, जैसे
एक पोस्ट में "मीडिया कम्युनलाइजेशन ने ईद कवरेज को कम किया" कहा गया, जो
धार्मिक पूर्वाग्रह की पुष्टि करता है।
मीडिया के
साम्प्रदायिकीकरण को रोकने के लिए स्वतंत्र नियामक संस्थाएँ (जैसे NBC), सेंसरशिप
कानूनों का सख्त प्रवर्तन और पत्रकारिता शिक्षा में नैतिकता पर जोर आवश्यक है।
लेकिन आलोचनात्मक रूप से, जब तक मीडिया स्वामित्व का एकाधिकार
रहेगा, यह प्रक्रिया जारी रहेगी। भारत में मीडिया का
साम्प्रदायिकीकरण एक घातक प्रवृत्ति है,
जो हेट स्पीच (74%
वृद्धि) और साम्प्रदायिक हिंसा (84% वृद्धि) को बढ़ावा दे रही है। यह पत्रकारिता
के सिद्धांतों का उल्लंघन है और लोकतंत्र को खतरे में डाल रहा है। यह सत्ता की
वैचारिक रणनीति का हिस्सा है, जो विविधता को धार्मिक विभाजन में
बदल रही है। यदि सुधार न हुए, तो मीडिया "लोकतंत्र का चौथा
खंभा" नहीं, बल्कि विभाजन का चौथा स्तंभ बनेगा।
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