प्रधानमंत्री
किसान फसल बीमा योजना: एक असफल योजना
डॉ भूपेन्द्र गुर्जर
बीजेपी की
मजबूत सरकार ने किसानों की फसलों की सुरक्षा के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) को 2016 में शुरू किया गया था, ताकि किसानों को प्राकृतिक आपदाओं (जैसे सूखा, बाढ़,
कीट) से फसल नुकसान के खिलाफ वित्तीय सुरक्षा प्रदान की जा सके।
योजना में किसानों को न्यूनतम प्रीमियम (केवल 2% खरीफ फसलों
के लिए, 1.5% रबी के लिए) देना पड़ता है, बाकी प्रीमियम सरकार और राज्य सब्सिडी देते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार,
यह योजना किसानों को "सुरक्षा कवच" प्रदान करती है। लेकिन
वास्तविकता में, यह योजना किसानों के लिए बोझ बन गई है—दावों में देरी, अस्वीकृति, और
बीमा कंपनियों के अत्यधिक लाभ ने इसे "लूट की योजना" बना दिया है। इसमें
2025 तक, नामांकन 20% गिर चुका है, और किसान शिकायतों से भरे हैं। यह लेख विश्लेषण
आंकड़ों, रिपोर्टों और किसानों की समस्याओं पर आधारित है,
जो दर्शाता है कि तथाकथित मजबूत मोदी सरकार की मूकदर्शिता ने इस
योजना को बीमा कम्पनियों को लूट की योजना बनाकर पूरी तरह असफल बना दिया।
1. योजना की सफलताएं: सरकारी दावे बनाम वास्तविकता
तथाकथित मजबूत
मोदी सरकार PMFBY
को अपनी बड़ी उपलब्धि बताती है। 2016 से जून 2025
तक, 78.41 करोड़ आवेदन बीमित हुए, और कुल ₹1.83 लाख
करोड़ के दावे वितरित किए गए। 2022-23 से 2024-25 में नामांकन 32% बढ़ा (3.17 करोड़
से 4.19 करोड़ तक)। 2025 में DIGI-Claim
मॉड्यूल और PFMS प्लेटफॉर्म से दावों को तेज
करने का दावा किया गया था। कितनी हैरत की बात है कि इस किसान लूट योजना में वास्तविक
दावा निपटान अनुपात (claim settlement ratio) कम है—कई राज्यों में 50% से नीचे। उदाहरणस्वरूप,
2022-25 तक के आंकड़ों में भुगतान किए गए दावे कुल दावों के 60-70%
ही हैं। नामांकन में गिरावट (20%) देरी और
अपर्याप्त मुआवजे के कारण हुई। सरकारी प्रचार (जैसे PIB रिलीज)
सकारात्मक आंकड़ों पर जोर देता है, लेकिन किसानों की असंतोष
को नजरअंदाज करता है।
2. प्रमुख असफलताएं: किसानों की लूट और बीमा कंपनियों का लाभ
प्रधानमंत्री किसान फसल बीमा योजना की
कमजोरियां संरचनात्मक हैं—जटिल प्रक्रिया, देरी, और
असमान वितरण हैं। मुख्य मुद्दे:
- दावा
निपटान में देरी और अस्वीकृति: किसानों को 72
घंटे में नुकसान की सूचना देनी पड़ती है, लेकिन सर्वे में महीनों लग जाते हैं। खरीफ सीजन में देरी सबसे ज्यादा,
जिससे किसान कर्ज में डूब जाते हैं। 2025 में हरियाणा के भिवानी में ₹350 करोड़ का बीमा घोटाला उजागर हुआ, जहां किसान
महीनों से धरना दे रहे हैं। X ट्विट्टर पर सैकड़ों शिकायतें
हैं, जैसे महाराष्ट्र में बैलेंस क्लेम पोर्टल पर दिख
रहा लेकिन खाते में आय ही नहीं है। एक किसान ने लिखा: "फसल खराब होने पर
जानकारी दी, लेकिन दो बार रिजेक्ट—क्या राजस्थान में फसल खराब नहीं हुई ?"
- बीमा
कंपनियों का अत्यधिक लाभ: योजना से
कंपनियां अरबों कमाती हैं, लेकिन दावे कम चुकाती हैं। 2023-24
में प्रीमियम आय 32% गिरी, लेकिन लाभ मार्जिन ऊंचा रहा। कम्पनियों को "अनुचित लाभ"
मिलते हैं, क्योंकि कंपनियां सर्वे में पक्षपात करती हैं। वर्ष 2024 में चार प्रमुख बीमा कंपनियों ने जोखिम कम किया, जिससे कवरेज घटी।
- योजना
की जटिलता:
भारत में 86% छोटे किसान कम्पनियों की
चालाकी भरी योजना को समझ नहीं पाते हैं। कई बार प्रीमियम पर दोहरी वसूली (एक
ही पॉलिसी पर दो बार) की शिकायतें आम हैं, रिफंड 48
घंटे में कभी नहीं मिलता है। X पर एक
किसान: "प्रीमियम दो बार कट गया, रिफंड नहीं—कई शिकायतें कीं, कोई समाधान नहीं।"
|
मुद्दा |
आंकड़े (2024-25) |
प्रभाव |
|
नामांकन गिरावट |
20%
कमी (राज्यों में) |
किसान असुरक्षित |
|
दावा निपटान अनुपात |
60-70%
(कुल दावों का) |
₹1.83 लाख
करोड़ में से लाखों अनसुलझे |
|
घोटाले/प्रोटेस्ट |
हरियाणा: ₹350 करोड़ स्कैम |
किसान धरना, आत्महत्याएं
बढ़ी |
|
कंपनियों का लाभ |
प्रीमियम: ₹9,890 करोड़ (AIC) |
किसान लूटे गए |
3. किसानों की आवाज: X ट्विटर और वास्तविक
शिकायतें
X (पूर्व ट्विटर) पर 2024-25
से PMFBY की शिकायतें बाढ़ आईं। किसान #PMFBYFailure
जैसे हैशटैग से चिल्ला रहे हैं:
- "फसल 100% खराब, लेकिन
क्लेम 1%—सर्वे क्यों नहीं?" (राजस्थान किसान)।
- "बैलेंस क्लेम 2 महीने से पोर्टल पर, खाते में नहीं" (महाराष्ट्र)।
- "हेल्पलाइन 14447 रिसीव नहीं करती—शिकायतें व्यर्थ"।
- एक
पोस्ट: "बीमा कंपनियां रिजेक्ट कर रही, सरकार
चुप—लूट है यह।"
ये शिकायतें दर्शाती हैं कि यह योजना
किसानों के लिए "दिखावटी" मात्र है। आधिकारिक हैंडल @pmfby ज्यादातर हेल्पलाइन पर भेजता है, लेकिन इसमें समाधान
कम होते हैं।
4. सरकार की भूमिका: मूकदर्शक या सुधारक?
सरकार ने 2025 में प्रक्रिया सरल बनाई (DIGI-Claim), लेकिन क्रियान्वयन अब भी कमजोर बना हुआ है। PIB रिलीज में "22.667 करोड़ किसानों को लाभ" देने का दावा किया जा रहा है, जो पूरी तरह असत्य है, उच्च क्लेम रेशियो वाले राज्यों (जैसे असम, बिहार) में भी देरी होती है। सरकार अपने प्रिय बीमा कम्पनियों को सब्सिडी देती है, लेकिन कंपनियों पर कोई नियंत्रण दिखाई नहीं देता है, जिसके परिणामस्वरूप, किसान लगातार लुटे जाते रहते हैं। 2025 बजट में आउटकम पर फोकस, लेकिन ग्रामीण शिकायतें अनसुनी। अर्थशास्त्री कहते हैं कि योजना को पुनर्गठित करनी चाहिए, अन्यथा नामांकन और गिरेगा। PMFBY एक असफल योजना साबित हुई—यह किसानों को लूटती है (देरी, रिजेक्शन से), बीमा कंपनियों को अमीर बनाती है (उच्च लाभ), और सरकार मूकदर्शक बनी रही। जबकि सरकारी आंकड़े इसे जबरदस्ती चमकाते हैं, वास्तविकता में 30-40% दावे अनसुलझे रहते हैं। तत्काल सर्वे, पारदर्शी दावा निपटान, और कंपनियों पर सख्ती नहीं होने से यह योजना किसानों का विश्वास खो चुकी है। सरकार को स्वतंत्र ऑडिट, डिजिटल ट्रैकिंग मजबूत करना और किसान संगठनों को शामिल करें। अन्यथा, जलवायु संकट में किसान और असहाय हो जाएंगे। जैसा एक किसान ने कहा: "बीमा कराओ, सुरक्षा पाओ—लेकिन सुरक्षा कहां?"
किसान फसल
बीमा योजना (PMFBY):
बीमा कंपनियों को मिले लाभ का विवरण
अब हम इस प्रधानमंत्री
फसल बीमा योजना (PMFBY)
के तहत, बीमा कंपनियां प्रीमियम (किसानों और
सरकार से) एकत्र करती हैं, लेकिन दावों का भुगतान कम होने से
उन्हें बड़ा लाभ होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2016 से
2023 तक कुल प्रीमियम संग्रह ₹1,48,482
करोड़ था, जबकि दावों का भुगतान ₹1,12,943
करोड़—यानी कंपनियों को ₹35,539
करोड़ का शुद्ध लाभ हुआ। 2023-24 में, कृषि बीमा कंपनी (AIC) का सकल प्रीमियम ₹19,490
करोड़ था, जबकि दावों का भुगतान ₹5,565
करोड़। निजी कंपनियां सरकारी कंपनियों से दोगुना लाभ कमा रही हैं,
क्योंकि वे कम जोखिम वाले क्षेत्रों पर फोकस करती हैं। 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सभी कंपनियों का औसत दावा
अनुपात 67.8% है, यानी प्रीमियम का 32.2%
लाभ के रूप में बरकरार। निजी कंपनियां (जैसे HDFC ERGO,
Reliance General) इसमें अग्रणी हैं। उत्तर प्रदेश में 2016-2024
तक कंपनियों को ₹10,975 करोड़ प्रीमियम मिला, लेकिन दावों में केवल ₹5,246
करोड़ (47.8%) का भुगतान। इतना मोटा मुनाफा
कमाकर ये कम्पनी किसका लाभ कर रही है?
प्रमुख
बीमा कंपनियों को लाभ का विवरण (2016-2023 तक रिपोर्टेड)
नीचे
तालिका में मुख्य कंपनियों का विवरण दिया गया है। लाभ = कुल प्रीमियम - दावे -
व्यय (व्यय घटाकर अनुमानित;
सटीक लाभ ऑपरेशनल लागत पर निर्भर)। ये डेटा सरकारी रिपोर्टों और
विश्लेषण पर आधारित।
|
कंपनी का
नाम |
प्रकार |
कुल प्रीमियम
संग्रह (₹ करोड़, अनुमानित 2016-2023) |
दावों का
भुगतान (₹ करोड़) |
अनुमानित
लाभ (₹ करोड़) |
टिप्पणी |
|
Agriculture Insurance Company
(AIC) |
सरकारी |
1,00,000+ |
70,000+ |
10,000-15,000 |
सबसे बड़ा हिस्सा; 2023-24 में ₹19,490 करोड़ प्रीमियम, ₹5,565 करोड़ दावे। |
|
HDFC ERGO General Insurance |
निजी |
15,000-20,000 |
8,000-10,000 |
4,000-6,000 |
निजी कंपनियों में
शीर्ष; 30-70% लाभ मार्जिन। |
|
Reliance General Insurance |
निजी |
10,000-15,000 |
5,000-7,000 |
3,000-5,000 |
कम जोखिम वाले
क्षेत्रों से उच्च लाभ। |
|
ICICI Lombard General
Insurance |
निजी |
8,000-12,000 |
4,000-6,000 |
2,000-4,000 |
दावा अस्वीकृति से
लाभ बढ़ा। |
|
Bajaj Allianz General
Insurance |
निजी |
7,000-10,000 |
3,500-5,000 |
1,500-3,000 |
PMFBY में सक्रिय;
सरकारी सब्सिडी से फायदा। |
|
New India Assurance |
सरकारी |
20,000-25,000 |
15,000-18,000 |
2,000-3,000 |
कम लाभ; अधिक दावे। |
|
United India Insurance |
सरकारी |
15,000-20,000 |
12,000-15,000 |
1,500-2,500 |
सरकारी कंपनियों
में औसत। |
नोट:
- ये
आंकड़े अनुमानित हैं,
क्योंकि कंपनियां सटीक लाभ सार्वजनिक नहीं करतीं। कुल लाभ में
निजी कंपनियों का हिस्सा 60-70% है। 2023-25 में लाभ बढ़ा, क्योंकि नामांकन 32% बढ़ा लेकिन दावे 60-70% ही बने।
- स्रोत:
PIB,
The Hindu BusinessLine (2025), Tatsat Chronicle (2024)।
यह योजना किसानों के बजाय कंपनियों
को लाभ पहुंचा रही है,
जहां दावों में देरी और अस्वीकृति आम है। इसमें आमूलचूल सुधार की
आवश्यकता है, जैसे स्वतंत्र ऑडिट।
किसान फसल
बीमा योजना (PMFBY):
सरकार द्वारा कंपनियों को दिए गए हिस्से का विवरण
अब इस लूट
में शामिल कम्पनियों को मोदी सरकार और राज्य सरकारें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
(PMFBY)
के तहत कुल प्रीमियम का बड़ा हिस्सा (लगभग 90-98%) सरकारें (केंद्र और राज्य) सब्सिडी के रूप में बीमा कंपनियों को देती हैं।
किसान केवल न्यूनतम प्रीमियम (खरीफ फसलों के लिए 2%, रबी के
लिए 1.5%, और बागवानी फसलों के लिए 5%) चुकाते हैं। बाकी प्रीमियम (एक्ट्यूरियल प्रीमियम, जो
जोखिम के आधार पर 10-20% तक हो सकता है) केंद्र और राज्य
सरकारें समान रूप से (50:50) वहन करती हैं। उत्तर-पूर्वी
राज्यों के लिए केंद्र का हिस्सा 90% तक है।
कुल
सब्सिडी का अवलोकन (2016-2025 तक)
- कुल
प्रीमियम संग्रह:
लगभग ₹1,48,482
करोड़ (किसानों + सरकारों से)।
- सरकारी
सब्सिडी (केंद्र + राज्य): ₹1,17,343 करोड़ (कुल का ~79%)।
- केंद्र
सरकार का हिस्सा:
₹58,671
करोड़ (राज्य के बराबर)। 2025-26 के लिए
बजट आवंटन: ₹12,242
करोड़।
- कुल
दावे भुगतान:
₹1,12,943
करोड़ (कुछ देरी से लंबित)।
- कंपनियों
का अनुमानित लाभ:
₹35,539
करोड़ (प्रीमियम - दावे)।
सब्सिडी का वितरण कंपनियों के बीच
उनके कवरेज क्षेत्र (क्लस्टर) के आधार पर होता है। प्रमुख कंपनियों को दिए गए
अनुमानित सब्सिडी का विवरण अग्रलिखित दिया गया है (2016-2023 तक;
2024-25 के लिए आंकड़े अपडेट हो रहे हैं)। ये आंकड़े सरकारी
रिपोर्टों (PIB, DAC&FW) और RTI डेटा
पर आधारित हैं। सटीक ब्रेकडाउन सार्वजनिक रूप से सीमित है, लेकिन
कुल सब्सिडी के अनुपात से अनुमानित।
|
कंपनी का
नाम |
प्रकार |
अनुमानित
कुल प्रीमियम संग्रह (₹ करोड़,
2016-2023) |
अनुमानित
सरकारी सब्सिडी (केंद्र + राज्य, ₹ करोड़) |
टिप्पणी |
|
Agriculture
Insurance Company (AIC) |
सरकारी |
1,00,000+ |
80,000-90,000 |
सबसे बड़ा कवरेज; 2023-24 में ₹15,592 करोड़ सब्सिडी (कुल प्रीमियम ₹19,490 करोड़ का ~80%)। |
|
HDFC ERGO General
Insurance |
निजी |
15,000-20,000 |
12,000-16,000 |
उच्च लाभ; कम जोखिम वाले क्षेत्रों से अधिक सब्सिडी। |
|
Reliance General
Insurance |
निजी |
10,000-15,000 |
8,000-12,000 |
राजस्थान जैसे
राज्यों में देरी वाले भुगतान। |
|
ICICI Lombard
General Insurance |
निजी |
8,000-12,000 |
6,400-9,600 |
दावा अस्वीकृति से
लाभ बढ़ा; सब्सिडी का ~80% हिस्सा। |
|
Bajaj Allianz
General Insurance |
निजी |
7,000-10,000 |
5,600-8,000 |
राजस्थान में ₹120 करोड़ (₹142 करोड़ का 85%)
बकाया (2017-19)। |
|
New India
Assurance |
सरकारी |
20,000-25,000 |
16,000-20,000 |
अधिक दावे; कम लाभ मार्जिन। |
|
United India
Insurance |
सरकारी |
15,000-20,000 |
12,000-16,000 |
औसत कवरेज; सब्सिडी का 50:50 केंद्र-राज्य
हिस्सा। |
यह व्यवस्था किसानों को राहत देने
के बजाय कंपनियों को मजबूत कर रही है।
किसान फसल
बीमा योजना (PMFBY):
निजी और सरकारी कंपनियों को लाभ का वर्षवार विवरण
किसान फसल
बीमा योजना के तहत लाभ (प्रॉफिट) का अनुमान प्रीमियम संग्रह (gross
premium) और दावों के भुगतान (claims paid) के
अंतर पर आधारित है। सरकारी डेटा (DAC&FW, IRDAI, PIB) से
पता चलता है कि 2016-2025 तक कुल प्रीमियम ₹1,48,482
करोड़ से अधिक रहा, जबकि दावे ₹1,12,943
करोड़—अर्थात कुल लाभ ~₹35,539
करोड़। निजी कंपनियां (जैसे HDFC ERGO, Reliance) कम जोखिम वाले क्षेत्रों पर फोकस करती हैं, इसलिए
उनका लाभ मार्जिन (30-40%) सरकारी कंपनियों (AIC, New
India) से अधिक (10-15%) रहता है। 2016-2021
तक निजी कंपनियों का कुल लाभ ~₹24,350
करोड़ रहा, जो सरकारी का दोगुना है।
नीचे
वर्षवार तालिका दी गई है (2016-17
से 2024-25 तक; 2025-26 का
डेटा अपूर्ण)। लाभ = अनुमानित प्रीमियम - दावे (व्यय घटाकर; सटीक
लाभ ऑपरेशनल लागत पर निर्भर)। डेटा सरकारी रिपोर्टों (PIB, IBEF, Indiastat,
The Hindu BusinessLine) से संकलित। क्लेम रेशियो (claims/premium
%) भी शामिल।
|
वर्ष |
कुल प्रीमियम (₹ करोड़) |
कुल दावे (₹ करोड़) |
क्लेम रेशियो (%) |
सरकारी कंपनियों का लाभ (₹ करोड़) |
निजी कंपनियों का लाभ (₹ करोड़) |
टिप्पणी |
|
2016-17 |
13,516 |
10,428 |
77 |
500-800 |
1,000-1,500 |
निजी कंपनियां कम दावे; सार्वजनिक का CP रेशियो 93%। |
|
2017-18 |
15,000 |
12,900 |
86 |
300-500 |
1,200-1,800 |
निजी का CP रेशियो 76%; निजी लाभ बढ़ा। |
|
2018-19 |
16,500 |
13,200 |
80 |
400-600 |
1,300-1,700 |
कुल CP 81%; निजी कंपनियां जोखिम कम। |
|
2019-20 |
18,000 |
15,300 |
85 |
500-700 |
1,500-2,000 |
अच्छा मानसून, लेकिन निजी लाभ ऊंचा। |
|
2020-21 |
20,000 |
12,200 |
61 |
-500 (घाटा) |
2,500-3,000 |
निजी लाभ दोगुना; सार्वजनिक CP 113%। |
|
2021-22 |
22,000 |
16,500 |
75 |
800-1,000 |
2,000-2,500 |
नामांकन गिरावट, लेकिन निजी लाभ स्थिर। |
|
2022-23 |
25,000 |
18,750 |
75 |
1,000-1,200 |
2,200-2,800 |
97% दावे सेटल; निजी हिस्सा
बढ़ा। |
|
2023-24 |
28,000 |
19,600 |
70 |
1,200-1,500 |
3,000-3,500 |
नामांकन 32% वृद्धि; AIC का लाभ ₹2,000 करोड़। |
|
2024-25 (अनुमानित) |
30,000 |
21,000 |
70 |
1,500-1,800 |
3,500-4,000 |
बजट ₹12,242 करोड़; 4 करोड़ किसान लाभान्वित। |
·
लाभ अनुमानित हैं, क्योंकि
कंपनियां सटीक लाभ सार्वजनिक नहीं करतीं। निजी कंपनियों का कुल लाभ 2016-2021
तक ₹24,350 करोड़।
·
2020-21
में सार्वजनिक कंपनियों को घाटा, क्योंकि उच्च
जोखिम वाले क्षेत्र कवर किए।
·
कुल नामांकन 2025 तक 78.41
करोड़ आवेदन, दावे ₹1.83
लाख करोड़।
·
स्रोत: PIB, IBEF (2025), Indiastat, The
Hindu BusinessLine। अधिक विस्तार के लिए IRDAI वार्षिक रिपोर्ट देखें।
यह डेटा दर्शाता है कि निजी
कंपनियां लगातार अधिक लाभ कमा रही हैं, जबकि सरकारी
कंपनियां जोखिम वहन करती हैं। यह योजना किसानों के हित में बनाई गयी थी या बीमा
कम्पनियों को लाभ अर्जन के लिए?
मोदी
का राज्य गुजरात ही इस योजना को छोड़ भागा?
किसान फसल बीमा योजना (PMFBY) से बाहर निकले राज्य: एक विवरण
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) एक स्वैच्छिक योजना है, जिसमें राज्य सरकारें अपनी
वित्तीय स्थिति, दावा निपटान की देरी या कम दावा अनुपात के
कारण इसमें शामिल होने या बाहर निकलने का निर्णय ले सकती हैं। 2025 तक, योजना से पूरी तरह या आंशिक रूप से बाहर निकले
राज्यों की संख्या 10 है। ये राज्य मुख्य रूप से उच्च
सब्सिडी बोझ या वैकल्पिक मॉडल (जैसे राज्य-स्तरीय बीमा योजनाएं) अपनाने के कारण
बाहर हैं।
बाहर निकले राज्यों की सूची (2025 तक)
2023-2025
के सरकारी आंकड़ों (कृषि मंत्री के राज्या सभा उत्तर) पर आधारित है।
कुछ राज्य कभी शामिल ही नहीं हुए, जबकि अन्य ने बाद में बाहर
निकल लिया।
|
राज्य का नाम |
बाहर निकलने का
वर्ष/स्थिति |
कारण/टिप्पणी |
|
अरुणाचल
प्रदेश |
कभी
शामिल नहीं (ongoing) |
वित्तीय
बाधाएं;
पूर्वोत्तर राज्यों में कम नामांकन। |
|
बिहार |
2018-20
से बाहर |
सब्सिडी
बोझ;
राज्य-स्तरीय योजना अपनाई। |
|
गुजरात |
2020
से बाहर |
उच्च
प्रीमियम;
वित्तीय दबाव। |
|
झारखंड |
2020
से बाहर |
वित्तीय
प्रतिबंध;
वैकल्पिक जोखिम प्रबंधन। |
|
मेघालय |
कभी
शामिल नहीं (ongoing) |
कम
कृषि कवरेज;
पूर्वोत्तर में चुनौतियां। |
|
मिजोरम |
कभी
शामिल नहीं (ongoing) |
वित्तीय
और भौगोलिक कारण। |
|
नागालैंड |
कभी
शामिल नहीं (ongoing) |
पूर्वोत्तर
राज्यों की सामान्य समस्या। |
|
पंजाब |
कभी
शामिल नहीं (ongoing) |
हमेशा
से बाहर;
2025 में केंद्र ने पुनः शामिल होने का आग्रह किया। |
|
तेलंगाना |
2018-20
से बाहर |
सब्सिडी
और दावा देरी। |
|
पश्चिम
बंगाल |
2018-20
से बाहर |
वित्तीय
बाधाएं;
राज्य-स्तरीय मॉडल। |
·
ये 10 राज्य
PMFBY को पूरी तरह लागू नहीं कर रहे हैं। कुछ (जैसे आंध्र
प्रदेश) 2019-20 में बाहर निकले लेकिन 2023-24 में वापस लौट आए।
·
कुल 28 राज्य
और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं; बाकी ~18
राज्य योजना चला रहे हैं।
·
2025 में,
केंद्र ने पंजाब और अन्य को वापस लाने के प्रयास तेज किए हैं,
विशेषकर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में।


0 टिप्पणियाँ