सरकार की प्रिय कम्पनी जीएसटी छूट का पूरा लाभ आम ग्राहकों को क्यों नहीं देती?
डॉ.
भूपेन्द्र गुर्जर मायचा
भारत में
टैक्स छूट से मिलने वाले फ़ायदों को कंपनियां ग्राहकों को क्यों नहीं ट्रांसफर
करती हैं? सरकार द्वारा 2019, 2022 में दिए टैक्स छूट का फायदा ग्राहकों को नहीं
दिया गया। इसी विषय पर आज की चर्चा इस लेख के माध्यम से की गयी है। कृपा इसे आंकड़ों
और तथ्यों के नजरिये से पढ़ें...........
भारत में टैक्स छूट के लाभों को
कंपनियां ग्राहकों तक क्यों नहीं पहुंचातीं?
भारत में टैक्स छूट (जैसे GST रेट कट या कॉर्पोरेट टैक्स में कमी) का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था को
गति देना होता है, जिसमें कंपनियों के लागत कम होने से वे
उत्पादों की कीमतें घटाकर या गुणवत्ता सुधारकर ग्राहकों को लाभ पहुंचा सकती हैं।
हालांकि, कई मामलों में कंपनियां इन लाभों को पूरी तरह या
आंशिक रूप से ग्राहकों तक नहीं पहुंचातीं। इसके पीछे कई स्पष्ट कारण हैं, जैसे लाभ को अपनी मुनाफे में अवशोषित करना, चंद
कम्पनियों के कारण भारतीय बाजार की प्रतिस्पर्धा की कमी, मूल्य
निर्धारण की जटिलताएं, और सरकारी नियमों का अपर्याप्त होना,
जिनके सहारे ये कम्पनी पूरा लाभ खुद पचा जाती हैं।
1. कारण: लाभ को
मुनाफे में अवशोषित करना (Profit Absorption)
भारत में कंपनियां टैक्स छूट से
मिली बचत को अपनी लाभ मार्जिन बढ़ाने या निवेश में लगाने के लिए इस्तेमाल करती हैं, बजाय कीमतें घटाने के, हालाँकि बाजार में मांग की कमी की वजह से कम्पनी
निवेश भी उस मात्रा में नहीं करती हैं, जितना उनके पास आरक्षित धन पड़ा होता है। यह
विशेष रूप से उन सेक्टरों में होता है जहां बाजार पर कुछ बड़ी कंपनियों का वर्चस्व
होता है, और वे मूल्य निर्धारण को नियंत्रित कर सकती हैं।
सरकारी एंटी-प्रॉफिटियरिंग नियम (जो GST छूट के लाभ ग्राहकों
तक पहुंचाने के लिए बने हैं) का पालन न करना या जांच से बचना भी एक कारण है।
2019 में कॉर्पोरेट
टैक्स कट (30% से 22% करने के बावजूद
कम्पनियों ने ग्राहकों को लाभ नहीं दिया:-सितंबर 2019 में पूंजीपति प्रिय मोदी सरकार ने मौजूदा कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स
रेट को 30% से घटाकर 22% कर दिया,
जिससे कंपनियों को 1.5 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई
थी। इसका उद्देश्य निवेश और रोजगार बढ़ाना था। लेकिन कम्पनियों ने इसका लाभ नहीं
दिया। अध्ययनों से पता चला कि इस छूट का रोजगार या मजदूरी पर कोई महत्वपूर्ण
प्रभाव नहीं पड़ा, साथ ही इस 1.5 लाख करोड़ रूपया के टैक्स
छूट का ग्राहकों को उत्पादों की कीमतों में कमी नहीं मिली। उदाहरण के लिए,
FMCG (फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियां जैसे सुपरमार्केट चेन
(बिग बाजार, रिलायंस रिटेल) ने इस बचत को अपनी लाभप्रदता
बढ़ाने में लगाया, न कि ग्राहकों को सस्ते उत्पाद देकर।
परिणामस्वरूप, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं आई।
कॉर्पोरेट टैक्स कट सीधे उत्पाद
लागत को प्रभावित नहीं करता (जैसे GST), इसलिए कंपनियां
इसे ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए बाध्य नहीं होतीं हैं। इसके बजाय, वे इसे शेयरधारकों को डिविडेंड या विस्तार में लगाती हैं। आर्थिक सर्वे 2019-20
के अनुसार, इस छूट का मुख्य लाभ 1% से कम बड़ी कंपनियों को मिला, जो छोटे व्यवसायों या
ग्राहकों तक नहीं पहुंचा। बाकि छोटे और कुटीर उद्योगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला।
2. भारत में वस्तु
मूल्य निर्धारण की जटिलताएं और इन्वेंटरी मैनेजमेंट (Pricing Complexities)
टैक्स छूट के बाद पुरानी इन्वेंटरी
(जिस पर उच्च टैक्स चुकाया गया था) को साफ करने में समय लगता है, और कंपनियां नई कीमतें तुरंत लागू नहीं कर पातीं। साथ ही, छोटे मूल्य बिंदुओं (जैसे ₹10-20 के उत्पाद) पर राउंडिंग या पैकेजिंग बदलाव के कारण लाभ पास करना मुश्किल
होता है। मतलब साफ़ है, जो 10-20 रूपया के पेक हैं, उनको अब तक हवा से फुलाया गया
था, अब उनका कुछ ग्राम वजन बढ़ा दिया जाएगा। इसके साथ ही वितरकों और रिटेलर्स के
बीच क्रेडिट एडजस्टमेंट भी देरी का कारण बनता है।
2019 के GST रेट कट पर FMCG उत्पाद और 2025
के हालात :-
सरकार ने 2019 में कई उत्पादों पर GST रेट 28% से घटाकर 18% और 12%
से 5% कर दिया, जैसे
साबुन, टूथपेस्ट आदि। लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियां (MNCs)
जैसे प्रॉक्टर एंड गैंबल (P&G), यूनिलीवर
(हिंदुस्तान यूनिलीवर) ने लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया। टैक्स अथॉरिटी ने इसे जांच
में सही पाया कि कंपनियां ने टैक्स छूट के बाद वस्तुओं की कीमतें नहीं घटाईं,
बल्कि लाभ से अपनी जेब भरी। आज कम्पनी धन के रिजर्व पर बैठी हैं। इसी
तरह, सितंबर 2025 में हाल के GST
कट में स्वास्थ्य बीमा, शैंपू, टूथपेस्ट और छोटे कारों पर जीरो या कम GST लगाया
गया। FMCG फर्म्स ने सरकार से कहा कि ₹18
जैसे छोटे मूल्य वाले उत्पादों पर सीधे लाभ पास नहीं किया जा सकता,
क्योंकि भारतीय उपभोक्ता ₹10-20 के बैंड में उत्पाद चाहते हैं, और कीमत बदलाव
उपभोक्ता व्यवहार प्रभावित कर सकता है। परिणामस्वरूप, 22 सितंबर
2025 तक कीमतें पूरी तरह नहीं गिरीं। इसके साथ-साथ ये कंपनियां
ट्रेड प्रमोशन्स और इन्वेंटरी एडजस्टमेंट का हवाला दे कर खुद को बचाती हैं। वित्त
मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा कि अब फोकस लाभ ग्राहकों तक पहुंचाने पर है,
लेकिन निगरानी तंत्र के कमजोर होने से ये कंपनियां बच जाती हैं।
3. बाजार
प्रतिस्पर्धा की कमी और रणनीतिक मूल्य निर्धारण (Lack of Competition and
Strategic Pricing)
जहां बाजार पर कुछ बड़ी कंपनियों का
एकाधिकार होता है,
वहां वे कीमतें स्थिर रखकर लाभ बनाए रखती हैं। टैक्स छूट को बाजार
हिस्सेदारी बढ़ाने या उत्पाद विविधीकरण में इस्तेमाल किया जाता है, न कि कीमत घटाने में, जिससे ग्राहकों को इसका कोई सीधा लाभ नहीं मिलता है।
कुछ
उदाहरण 2017-18
GST लॉन्च के बाद रेट कट्स के :-
2017-18 में GST लागू होने के बाद
कई रेट कट्स हुए, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता वस्तुओं
पर। लेकिन कंपनियां जैसे सैमसंग, एप्पल ने मोबाइल फोन्स की
कीमतें नहीं घटाईं, बल्कि नई सुविधाओं को जोड़कर वस्तु-उत्पादों
की कीमत को पूरी तरह से जस्टिफाई किया। उपभोक्ता संगठनों ने शिकायत की, परन्तु
पूंजीपति सरकार के प्रिय होने के चलते ग्राहकों को ये लाभ पास नहीं हुए। भारत में
कम कम्पनी होने के चलते प्रतिस्पर्धा कम है, जिसके कारण (जैसे टेलीकॉम या FMCG
में कुछ प्रमुख खिलाड़ी) कंपनियां मूल्य युद्ध से बचती हैं। इसके
बजाय, वे छूट को R&D या मार्केटिंग
में लगाने का दावा करती हैं, जिससे ग्राहक अप्रत्यक्ष रूप से
प्रभावित होते हैं, लेकिन सीधा लाभ उन्हें कभी नहीं मिलता है।
उपरोक्त उदाहरण दिखाते हैं कि टैक्स
छूट का लाभ अक्सर कॉर्पोरेट प्रॉफिट में चला जाता है, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ती है। सरकार एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी के
माध्यम से जांच करती है, लेकिन सख्त कानूनों के प्रवर्तन की
जरूरत है। उपभोक्ताओं को लाभ दिलाने के लिए पारदर्शी मूल्य ट्रैकिंग और
प्रतिस्पर्धा बढ़ाना आवश्यक है।
पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड (Patanjali
Ayurved Ltd.), जो मोदी के सबसे प्रिय योग व्यवसायी रामदेव द्वारा
स्थापित एक प्रमुख भारतीय ब्रांड है, ने कई मौकों पर टैक्स
छूट या कर राहतों का लाभ उठाया, लेकिन इन्हें ग्राहकों तक
कीमतों में कमी के रूप में ट्रांसफर नहीं किया। इसके बजाय, कंपनी
ने इस बचत को अपनी विस्तार योजनाओं, उत्पाद विविधीकरण,
और लाभ मार्जिन बढ़ाने में लगाया। यह एक क्लासिक उदाहरण है जहां
बाजार पर एक ब्रांड का मजबूत वर्चस्व (विशेष रूप से आयुर्वेदिक और हर्बल उत्पादों
में) और कम प्रतिस्पर्धा के कारण लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचा। पतंजलि जैसी तेजी
से बढ़ती कंपनियां टैक्स बचत को बिजनेस वृद्धि में लगाती हैं, न कि कीमतें घटाने में। भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों का बाजार अपेक्षाकृत
कम प्रतिस्पर्धी है, जहां पतंजलि का 20-30% हिस्सा है, इसलिए वे मूल्य निर्धारण को नियंत्रित कर
सकती हैं। कंपनी का फोकस ब्रांड बिल्डिंग और नए उत्पाद लॉन्च पर होता है, जो ग्राहकों को अप्रत्यक्ष लाभ देता है, लेकिन सीधे
सस्ते उत्पाद नहीं।
GST लागू होने के बाद (जुलाई 2017),
कई पतंजलि उत्पादों जैसे हर्बल साबुन, शैंपू,
टूथपेस्ट, और दंत मंजन पर रेट 28% से घटकर 18% या 12% हो गया।
इससे कंपनी को सालाना करोड़ों रुपये की बचत होनी थी (कंपनी की 2017-18 की बिक्री ₹8,500 करोड़
थी, जिसमें टैक्स बचत अनुमानित ₹500-700
करोड़)। लेकिन ग्राहकों को कोई उल्लेखनीय मूल्य कमी नहीं मिली।
उदाहरण के लिए, पतंजलि का 'दंत कांति'
टूथपेस्ट (₹50 MRP) की कीमत वही रही, जबकि प्रतिस्पर्धी ब्रांड्स (जैसे
कोलगेट) ने मामूली कटौती की। कंपनी ने इस बचत को 2018 में FMCG
विस्तार में लगाया, जैसे नए प्लांट (हरिद्वार
में अतिरिक्त क्षमता) और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म लॉन्च में। पतंजलि के सीईओ आचार्य
बालकृष्ण ने सार्वजनिक बयानों में कहा कि लाभ "रिसर्च एंड डेवलपमेंट" (R&D)
में लगाया गया, जैसे आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन
सुधारने में। लेकिन उपभोक्ता फोरम की शिकायतों और GST काउंसिल
की 2018 की समीक्षा में पाया गया कि एंटी-प्रॉफिटियरिंग
नियमों का पालन नहीं हुआ। परिणामस्वरूप, रामदेव की कंपनी का नेट प्रॉफिट 2018 में 25%
बढ़कर ₹1,100 करोड़ हो गया, लेकिन आम ग्राहकों को इन टैक्स छूट का
कोई लाभ नहीं मिला।
कितनी हैरत की बात है कि पतंजलि
"स्वदेशी" और "प्राकृतिक" ब्रांड के रूप में खुद की पोजिशन
करती है,
जो उपभोक्ताओं को प्रीमियम मूल्य चुकाने के लिए प्रेरित करता है।
टैक्स छूट के बाद भी, वे कीमतें स्थिर रखते हैं ताकि ब्रांड
वैल्यू बनी रहे। साथ ही, छोटे पैक साइज और प्रचार अभियानों
के कारण लाभ पास करना "जटिल" बताते हैं।
सितंबर 2019 में कॉर्पोरेट टैक्स 30% से घटकर 22% होने से पतंजलि जैसी मिड-साइज कंपनियों को ₹200-300
करोड़ की वार्षिक बचत हुई (कंपनी की 2019-20 बिक्री
₹12,000 करोड़)।
यह छूट उत्पादन लागत कम करने वाली थी, खासकर आयुर्वेदिक
कच्चे माल पर। फिर भी, उसके उत्पाद 'पतंजलि
हनी' (₹100-150) या 'सौदंर्य संजीवनी' (₹200) की कीमतें 2020 तक नहीं गिरीं। इसके बजाय, कंपनी ने 2019-20 में नए उत्पाद लॉन्च किए, जैसे कोविड-19 के दौरान इम्यूनिटी बूस्टर (जिनकी
बिक्री ₹1,000 करोड़
से अधिक हुई), और लाभ मार्केटिंग में लगाया। पतंजलि की
वार्षिक रिपोर्ट (2019-20) में उल्लेख है कि टैक्स बचत
"कैपिटल एक्सपेंडिचर" (जैसे 10 नए डिस्ट्रीब्यूशन
सेंटर) में लगाई गई। ब्रांड लॉयल्टी (मुख्य रूप से ग्रामीण और मध्यम वर्ग में) के
कारण उपभोक्ता मूल्य संवेदनशीलता कम है, इसलिए कंपनी ने लाभ
को "आयुर्वेद प्रचार" के नाम पर जस्टिफाई किया। कंज्यूमर वॉयस जैसे
संगठनों ने 2020 में शिकायत दर्ज की, लेकिन
बिना किसी बड़े जुर्माने या रोक या नियंत्रण के पतंजलि लाभ कमाती रही और स्वदेशी का
आनंद भी लेती रही और सरकार चुपचाप देखती रही।
हालाँकि भारत में
एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी मौजूद है, लेकिन छोटी-मध्यम
कंपनियों पर सख्ती कम होती है। पतंजलि का "सामाजिक मिशन" (योग और
आयुर्वेद प्रचार) छवि जांच से बचने में मदद करती है।
पतंजलि
का 2021-22
में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) विवाद
GST में ITC सुविधा से पतंजलि को 2021-22 में ₹400
करोड़ से अधिक का लाभ मिला (आपूर्ति श्रृंखला पर टैक्स क्रेडिट)।
लेकिन उत्पाद मूल्यों में कोई कमी नहीं आई, जबकि कंपनी की
बिक्री 15% बढ़ी। GST नेटवर्क (GSTN)
की 2022 ऑडिट में पाया गया कि ITC का पूरा लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचा, लेकिन सरकार ने
केवल चेतावनी देकर कम्पनी को खुली छूट देती रही। पतंजलि ने इसे "ऑपरेशनल
चैलेंजेस" बताया, जैसे सप्लाई चेन लागत। बाजार वर्चस्व
(FMCG आयुर्वेद सेगमेंट में 40% शेयर)
के कारण प्रतिस्पर्धा न होने से कीमतें ऊंची रहीं।
रामदेव को सरकारी संरक्षण मिलने के कारण पतंजलि ने टैक्स छूट को अपनी तेज वृद्धि (2017 से 2022 तक बिक्री दोगुनी) के लिए ईंधन बनाया, लेकिन ग्राहकों को "सस्ते उत्पाद" का वादा पूरा नहीं किया। यह ब्रांड की रणनीति का हिस्सा था कि इस अकूत लाभ को बिजनेस स्केलिंग में लगाकर लंबे समय में बाजार हिस्सेदारी बढ़ाना। हालांकि, हाल के वर्षों में उपभोक्ता जागरूकता बढ़ने से दबाव पड़ा है, और 2023 में कुछ उत्पादों पर मामूली मूल्य कटौती हुई। यदि सरकार सख्त ट्रैकिंग (जैसे डिजिटल प्राइस मॉनिटरिंग) लागू करती तो, तो ऐसा दोहराना मुश्किल होता।
अन्य भारतीय कंपनियों द्वारा टैक्स
छूट के लाभों को ग्राहकों तक न पहुंचाने का स्पष्टीकरण
प्रमुख FMCG (फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियों ने GST रेट
कट्स (2017-2022 के बीच) के बावजूद लाभ ग्राहकों तक पूरी तरह
नहीं पहुंचा। ये मामले मुख्य रूप से नेशनल एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी (NAA)
की जांचों पर आधारित हैं, जो पाया गया कि
कंपनियां बचत को अपनी प्रॉफिट मार्जिन, विस्तार, या अन्य खर्चों में अवशोषित कर रही थीं। कारणों में बाजार वर्चस्व,
मूल्य निर्धारण जटिलताएं, और कमजोर प्रवर्तन
शामिल हैं।
1. हिंदुस्तान
यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) - ब्रांड्स: लक्स, लाइफबॉय, सर्फ एक्सेल
HUL जैसी बड़ी कंपनी ने टैक्स कम
होने के बाद कमाए लाभ को प्रॉफिट मार्जिन और इन्वेंटरी एडजस्टमेंट में अवशोषित किया।
पतंजलि के दिखाए रास्ते का पूरा पालन करते हुए HUL जैसी बड़ी
कंपनी ने भी GST कट के बाद कीमतें तुरंत नहीं घटाईं, बल्कि पुरानी इन्वेंटरी साफ करने और वितरण चेन एडजस्टमेंट का हवाला दिया।
बाजार पर 40% से अधिक हिस्सेदारी होने से वे मूल्य नियंत्रण
रख सकती है। नवंबर 2017 में GST कट के
बाद HUL ने साबुन (जैसे लाइफबॉय) और डिटर्जेंट (सर्फ एक्सेल)
पर लाभ नहीं पास किया। NAA की 2018 जांच
में पाया गया कि कंपनी ने ₹6.5 करोड़ का प्रॉफिटियरिंग किया, जो ग्राहकों को MRP
में कमी के रूप में न देकर अपनी जेब में रखा। 2018-19 में HUL की नेट प्रॉफिट 12% बढ़कर
₹6,000 करोड़
हो गई, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं आई। कंपनी ने बाद में केवल 2-3% की मामूली कटौती की, लेकिन पूरा लाभ (अनुमानित 10%)
पास नहीं हुआ। NAA ने HUL को लाभ ग्राहकों तक पहुंचाने का आदेश दिया, लेकिन
हाईकोर्ट में अपील के कारण जुर्माना टल गया। यह दर्शाता है कि प्रवर्तन कमजोर होने
से कंपनियां जांच से बच जाती हैं।
2. प्रॉक्टर एंड
गैंबल (P&G) इंडिया - ब्रांड्स: गिलेट, पैंपर्स, अरिएल
प्रॉक्टर
एंड गैंबल जैसी कम्पनी अपने रणनीतिक मूल्य निर्धारण और ब्रांड प्रीमियम के कारण
अलग ही आनंद में डूबी रहती हैं। P&G ने टैक्स
बचत को R&D और मार्केटिंग में लगाने का बहाना दिया,
क्योंकि इस कम्पनी के उत्पाद प्रीमियम सेगमेंट में हैं, जहां उपभोक्ता कीमत संवेदनशीलता कम है। ये प्रीमियम के नाम पर ग्राहकों को
ब्रांडेड माल चिपकाता है और ज्यादा कीमत होने के चलते सरकार को भी ज्यदा टैक्स
मिलता है तो सरकार भी चुपचाप पड़ी रहती है और इस लूट में शामिल रहती है और ग्राहकों
को ब्रांडेड माल के नाम पर लूटा जाता है।
अप्रैल 2019 में डायरेक्टर जनरल ऑफ एंटी-प्रॉफिटियरिंग (DGAP) ने
P&G पर ₹250 करोड़ का प्रॉफिटियरिंग आरोप लगाया, जिसमें गिलेट
शेवर और पैंपर्स डायपर पर GST लाभ (₹100
करोड़ से अधिक) ग्राहकों तक नहीं पहुंचा। NAA ने
2020 में तीन P&G इकाइयों (P&G
हाइजीन, गिलेट इंडिया) पर कुल ₹241
करोड़ का जुर्माना लगाया। कंपनी की 2019-20 बिक्री
₹8,000 करोड़
थी, लेकिन प्रॉफिट मार्जिन 15% बढ़ा,
जबकि उत्पाद MRP वही रहा। P&G ने तर्क दिया कि लागत में अन्य बढ़ोतरी (जैसे कच्चा माल) ने लाभ को ऑफसेट
कर दिया, लेकिन NAA ने इसे खारिज किया।
परिणामस्वरूप, कंपनी को ग्राहकों को रिफंड देना पड़ा,
लेकिन यह देरी से हुआ, जिससे उपभोक्ता संगठनों
ने शिकायत की।
3. नेस्ले इंडिया -
ब्रांड्स: मैगी, नेसcafe, किटकैट
बाजार
वर्चस्व के चलते नेस्ले ने बचत को नए उत्पाद लॉन्च और निर्यात
में लगाया,
न कि कीमत घटाने में। FMCG फूड सेगमेंट में 25%
शेयर होने से वे लाभ अवशोषित कर सकीं। 2017-18 GST रेट कट (इंस्टेंट नूडल्स और चॉकलेट पर 18% से 5%) के चलते DGAP की 2018 जांच
में पाया गया कि नेस्ले ने मैगी और किटकैट पर ₹100
करोड़ का लाभ पास नहीं किया। NAA ने दिसंबर 2019
में ₹90 करोड़ का
जुर्माना लगाया। 2018-19 में नेस्ले की नेट सेल्स 10%
बढ़कर ₹11,000 करोड़ हो गईं, लेकिन कमाल की बात देखिये इस लाभ या प्रॉफिट
20% उछला (₹1,700 करोड़), जबकि ग्राहकों को मात्र 1-2% की MRP कटौती मिली। कंपनी ने ITC क्रेडिट और इनपुट टैक्स
एडजस्टमेंट का हवाला दिया, लेकिन NAA ने
इसे प्रॉफिटियरिंग माना है। हाईकोर्ट ने 2024 में
एंटी-प्रॉफिटियरिंग क्लॉज को बरकरार रखा, जिससे नेस्ले को
रिफंड देना पड़ा।
4. ITC लिमिटेड -
ब्रांड्स: आशीर्वाद आटा, सनफीस्ट तेल, क्लासिक
इस
क्षेत्र में कम प्रतिस्पर्धा होने चलते ITC ने टैक्स बचत को
डाइवर्सिफाइड बिजनेस (सिगरेट से FMCG) में बैलेंस करने में दिखाया,
जिसके कारण ग्राहकों को टैक्स रेट में कमी का कोई लाभ नहीं मिला। 2019 कॉर्पोरेट टैक्स कट और GST एडजस्टमेंट (बिस्किट और
चाय पर 18% से 5%) के चलते ग्रहों को
सीधा लाभ नहीं मिला। NAA की 2019-20 जांचों में ITC पर प्रॉफिटियरिंग के आरोप लगे,
जहां सनफीस्ट चाय और आशिरवाद आटा पर ₹50
करोड़ से अधिक का लाभ पास नहीं हुआ। कुल FMCG प्रॉफिटियरिंग
केस में ITC शामिल था। 2019-20 में ITC
की FMCG बिक्री 8% बढ़कर
₹10,000 करोड़
हो गई, लेकिन प्रॉफिट मार्जिन 14% रहा,
जबकि ग्राहक शिकायतों में MRP स्थिर रहने की
बात आई। ITC ने इसको हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 2024 के फैसले से हार गई। वितरण चेन की जटिलता
को NAA ने इसे बहाना माना। कंपनी ने बाद में कुछ मामूली डिस्काउंट
दिए, लेकिन पूरा लाभ ग्राहकों को नहीं दिया।
ये उदाहरण (HUL,
P&G, नेस्ले, ITC) दिखाते हैं कि 2017-2022
के बीच GST छूट से कंपनियों को कुल ₹1,000
करोड़ से अधिक का लाभ मिला। इसका मुख्य कारण बाजार एकाधिकार (टॉप 5
FMCG कंपनियों का 60% शेयर) और NAA की जांच और दंड देने की सीमित क्षमता हैं।
भारत में GST रेट कट्स (2017-2022)
और कॉर्पोरेट टैक्स छूट (2019) से कंपनियों को
करोड़ों की बचत हुई, लेकिन अधिकांश मामलों में लाभ ग्राहकों
को MRP में कमी के रूप में न देकर प्रॉफिट मार्जिन, विस्तार, या R&D में
अवशोषित कर लिया गया। इसका बड़ा कारण बाजार वर्चस्व, मूल्य निर्धारण
जटिलताएं, और कमजोर प्रवर्तन रहें। NAA ने ₹600 करोड़+ की
प्रॉफिटियरिंग पाई। इन कम्पनियों के लाभ को खा-पचाने के लिए अग्रलिखित सारणी को
देखिये:-
उदाहरण (ब्रांड-विशिष्ट, आंकड़ों सहित):
|
ब्रांड/कंपनी |
प्रमुख उदाहरण |
लाभ अवशोषित राशि/प्रभाव |
कम्पनी द्वारा बताया गया कारण |
|
पतंजलि आयुर्वेद |
2017-19 GST कट्स (टूथपेस्ट, साबुन); ITC ₹400 करोड़+ |
प्रॉफिट 25% बढ़ा (₹1,100 करोड़, 2018); MRP स्थिर |
विस्तार/R&D में लगाया; ब्रांड
लॉयल्टी |
|
HUL (लक्स,
लाइफबॉय) |
2017 GST कट (साबुन 28%→18%); ₹6.5 करोड़ प्रॉफिटियरिंग |
प्रॉफिट 12% बढ़ा
(₹6,000 करोड़, 2019); मामूली
कटौती |
इन्वेंटरी एडजस्टमेंट; NAA जुर्माना |
|
P&G (गिलेट, पैंपर्स) |
2018-19 GST कट (18%→12%); ₹241 करोड़
प्रॉफिटियरिंग |
प्रॉफिट मार्जिन 15% बढ़ा; MRP वही |
R&D/मार्केटिंग; NAA रिफंड आदेश |
|
नेस्ले (मैगी, किटकैट) |
2017-18 GST कट (18%→5%); ₹90 करोड़ जुर्माना |
बिक्री 10% बढ़ी
(₹11,000 करोड़, 2019) |
उत्पाद विविधीकरण; हाईकोर्ट फैसला |
|
ITC (सनफीस्ट, आशीर्वाद) |
2019 GST एडजस्टमेंट; ₹50 करोड़+
लाभ पास न किया |
FMCG बिक्री 8% बढ़ी (₹10,000 करोड़, 2020) |
वितरण चेन जटिलता; NAA चेतावनी |
NAA
रिपोर्ट्स का सारांश:
·
निष्कर्ष: 100+ मामलों में FMCG/हॉस्पिटैलिटी पर फोकस; ₹600
करोड़+ प्रॉफिटियरिंग कन्फर्म। लाभ पास न करने पर MRP स्थिरता, प्रॉफिट बढ़ोतरी।
·
सिफारिशें: रिफंड
+ 18%
ब्याज; वेलफेयर फंड में जमा। लेकिन NAA
2022 में भंग; अब CCI/GSTAT पर निर्भर।
·
प्रभाव: 600+ शिकायतें हल, लेकिन 80% मामलों
में देरी; उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत।
GST
2.0 में सुधार के क्या मामले हैं और इसका क्या लाभ ग्राहकों को
मिलेगा, इसका आंकलन लगाना कोई फ़ारसी भाषा पढने जैसा नहीं है, एक बार फिर लूट के संकेत
जल्द मिलने शुरू हो जायेंगे, सब खा-पचा चाट जायेंगे ये कम्पनी के मालिक और सरकार
मूकदर्शक बनी देखती रह जायेगी और फिर नए रास्ते ढूँढने निकलेगी ...............।
उपभोक्ताओं जागरूक रहकर भी आप कुछ नहीं कर पाओगे।

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