मोदी सरकार उच्चतम न्यायालय में
पेगासस जासूसी में विस्तृत हलफनामा नहीं दाखिल करेगी और राफेल डील की तरह
राष्ट्रीय सुरक्षा और देशभक्ति के बहाने खुद को छुपाने का असफल प्रयास कर रही है. भारत
के संविधान के रक्षक सुप्रीम कोर्ट को लगातार कई तारीखों से धोखे में रखा जा रहा
है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बार बार दोहराते रहे कि सरकार ने जो संक्षिप्त
हलफनामा दिया है वह काफी है,क्योंकि
यह राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित है. इसके बावजूद उच्चतम न्यायालय ने विस्तृत हलफनामा
दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को दो बार समय दिया था. लेकिन मोदी सरकार के वकील
सुप्रीम कोर्ट को हवा में टरकाते रहे. मोदी सरकार सीधे-सीधे दादागिरी पर उतर आई
हैं. और उसने भारत के सबसे बड़े संविधान रक्षक उच्चतम न्यायालय को एक तरह से चुनौती
दे दी है कि पेगासस जासूसी पर कुछ नहीं बताएँगे ,उच्चतम
न्यायालय को जो करना हो कर ले.
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हमने सोचा था कि एक व्यापक
जवाब आएगा लेकिन यह एक सीमित जवाब है। हम देखेंगे, हम भी
सोचेंगे और विचार करेंगे कि क्या किया जा सकता है। हम चर्चा करेंगे कि क्या किया
जाना चाहिए, अगर विशेषज्ञों की समिति या कुछ अन्य समिति
बनाने की जरूरत है।" 12 अगस्त को, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं के जवाब के संबंध में
केंद्र सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा था। पेगासस विवाद 18
जुलाई को द वायर और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों द्वारा मोबाइल
नंबरों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद शुरू हुआ, जो
भारत सहित विभिन्न सरकारों को एनएसओ कंपनी द्वारा दी गई स्पाइवेयर सेवा के संभावित
लक्ष्य थे। द वायर के अनुसार, 40 भारतीय पत्रकार, राहुल गांधी जैसे राजनीतिक नेता, चुनाव रणनीतिकार
प्रशांत किशोर, ईसीआई के पूर्व सदस्य अशोक लवासा आदि को
लक्ष्य की सूची में बताया गया है। उसके बाद इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग
वाली कई याचिकाएं शीर्ष न्यायालय के समक्ष दर्ज की गईं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कथित घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि नि:संदेह
आरोप गंभीर हैं, यदि रिपोर्ट्स सही हैं। सीजेआई एनवी रमना ने
कहा, "सच्चाई सामने आएगी, यह एक
अलग कहानी है। हमें नहीं पता कि इसमें किसके नाम हैं।" याचिकाएं अधिवक्ता
एमएल शर्मा, पत्रकार एन राम और शशि कुमार, माकपा के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, पांच पेगासस
लक्ष्यों (परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और इप्सा शताक्सी)
सामाजिक कार्यकर्ता जगदीप छोक्कर, नरेंद्र कुमार मिश्रा और
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित कई लोगों द्वारा दायर की गई हैं।
चीफ जस्टिस श्री
एन.वी. रमना, जस्टिस श्री
सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने नागरिकों, पत्रकारों
आदि की जासूसी करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर के कथित अवैध उपयोग की जांच की मांग
करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया है. चीफ जस्टिस श्री
एन.वी. रमना ने शुरू में कहा कि हमने सोचा था कि सरकार जवाबी हलफनामा दायर करेगी और आगे की कार्रवाई तय
करेगी. अब केवल अंतरिम आदेश पारित किए जाने वाले मुद्दे पर विचार किया जाना है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीस महोदय की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह 2-3 दिनों के भीतर आदेश पारित कर देगी. इतना होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की पीठ
ने मोदी सक्र्कार को एक और मौका देते हुए कहा है कि यदि केंद्र सरकार कोई पुनर्विचार करती है, तो सॉलिसिटर
जनरल इस बीच मामले का उल्लेख कर सकते हैं.
भारत
के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना,
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने बार-बार
कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कोई जानकारी नहीं चाहती है और यह केवल आम
नागरिकों द्वारा स्पाइवेयर के अवैध उपयोग के माध्यम से लगाए गए अधिकारों के
उल्लंघन के आरोपों से संबंधित है।याचिकाकर्ताओं ने कैबिनेट सचिव द्वारा एक खुलासा
हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देने के लिए अंतरिम प्रार्थना की मांग की है। वे
मामले की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में एक स्वतंत्र समिति
/ एसआईटी के गठन की भी मांग कर रहे हैं।
सुप्रीमकोर्ट की
पीठ ने बार-बार कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कोई जानकारी नहीं चाहती है
और यह केवल आम नागरिकों द्वारा स्पाइवेयर के अवैध उपयोग के माध्यम से लगाए गए
अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से संबंधित है. याचिकाकर्ताओं ने कैबिनेट सचिव
द्वारा एक खुलासा हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देने के लिए अंतरिम प्रार्थना की
मांग की है. वे मामले की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में एक
स्वतंत्र समिति / एसआईटी के गठन की भी मांग कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट
क्या कर सकता है और क्या नहीं, को तय करने का ठेका सॉलिसिटर जनरल के इस कथन से
ज्ञात होता हैं कि जब सॉलिसिटर जनरल ने शुरुआत में कहा कि इस मुद्दे की
जांच करने के बाद, यह सरकार का रुख है कि ऐसे मुद्दों
पर हलफनामे पर बहस नहीं हो सकती है. ऐसे मामले अदालत के समक्ष बहस का विषय नहीं हो
सकते हैं. फिर भी, यह मुद्दा महत्वपूर्ण है इसलिए समिति
इसमें जांच करेगी.
जस्टिस
सूर्यकांत ने कहा कि हमें सुरक्षा या रक्षा से संबंधित मामलों को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं
है. हम केवल यह जानने के लिए चिंतित हैं कि क्या सरकार ने कानून के तहत स्वीकार्य
के अलावा किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल किया है. यह इंगित करते हुए कि अदालत के
समक्ष मुद्दा नागरिकों, पत्रकारों, आदि की जासूसी तक सीमित है.जस्टिस श्री सूर्यकांत ने कहा कि केवल सीमित
हलफनामा जो हम आपसे दायर करने की उम्मीद कर रहे थे, हमारे
सामने नागरिक हैं जो अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं, यदि आप स्पष्ट कर सकते हैं. जस्टिस श्री सूर्यकांत ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए इन सभी मुद्दों को
नागरिकों के वर्ग” तक सीमित किया जा सकता है.
चीफ जस्टिस रमना
ने कहा कि हम फिर से दोहरा
रहे हैं कि हमें सुरक्षा या रक्षा से संबंधित मामलों को जानने में कोई दिलचस्पी
नहीं है. हम केवल चिंतित हैं, जैसा कि मेरे भाई ने कहा, हमारे सामने पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि हैं. यह
जानने के लिए कि क्या सरकार ने कानून के तहत स्वीकार्य के अलावा किसी अन्य तरीके
का इस्तेमाल किया है या नहीं?
एसजी तुषार
मेहता ने यह भी दावा किया कि कोई अनधिकृत इंटरसेप्शन नहीं हुआ है और फिर भी, केंद्र ने मामले को देखने के लिए एक विशेषज्ञ
समिति का गठन किया है, जिसकी रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय
के समक्ष रखी जाएगी. मैंने पहले ही एक हलफनामा दायर किया है कि भारत में संवैधानिक
शासन, अर्थात् आईटी अधिनियम और टेलीग्राफ अधिनियम और
विशेष रूप से धारा 69 आईटी अधिनियम के अनुसार, कोई अनधिकृत इंटरसेप्शन नहीं हुआ है. केंद्र ने संसद को इसकी सूचना दी है.
फिर भी, यह मुद्दा महत्वपूर्ण है. इसलिए, हमने एक समिति गठित करने की इच्छा व्यक्त की है.
एसजी तुषार
मेहता ने आईटी मंत्री के इस बयान पर जोर दिया कि हमारी जांच और संतुलन की मजबूत
प्रणाली के भीतर किसी भी प्रकार की अवैध निगरानी संभव नहीं है. अगर कुछ व्यक्ति
निजता के हनन का दावा कर रहे हैं, तो सरकार इसे गंभीरता से लेती है. इसकी जांच होगी और इस पर ध्यान दिया
जाएगा। इसके लिए, सरकार ने एक समिति के गठन का सुझाव
दिया है. हालांकि, पेगासस उपयोग के संबंध में मुद्दा
बनाते हुए हलफनामा या सार्वजनिक बहस का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा या बड़े राष्ट्रीय
हित का नहीं होगा.
इस पर पीठ ने
जवाब दिया कि समिति नियुक्त करने या जांच करने का सवाल यहां नहीं है. अगर आप एक हलफनामा
दाखिल करते हैं तो हम जान जाएंगे कि आप कहां खड़े हैं, इंटरसेप्शन
के लिए एक स्थापित प्रक्रिया है. तथ्य यह है कि सरकार ने इनकार नहीं किया है. इसका
मतलब है कि उन्होंने पेगासस का इस्तेमाल किया है.
थे हिन्दू के पत्रकार
एन. राम और शशि कुमार द्वारा दायर जनहित याचिका में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल
सिब्बल ने कहा कि राज्य ऐसे मामले में कार्रवाई नहीं कर सकता है, जो अदालत को
सूचना ना देकर पूर्ण न्याय प्रदान करने से रोकता है. मेरे विद्वान मित्र कह रहे
हैं कि यह राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक होगा. मुझे खेद है कि यह न्याय के लिए
हानिकारक होगा. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राम जेठमलानी मामले ( काला धन केस)
का जिक्र करके कहा- जहां उच्चतम न्यायालय ने राय दी थी कि राज्य का
कर्तव्य है कि वह अदालत और याचिकाकर्ताओं को सभी जानकारी प्रकट करे. मौलिक
अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामले में, राज्य एक
विरोधी की तरह कार्य नहीं कर सकता है. राज्य द्वारा सूचना को रोकना नागरिक की
बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने
ने अपने नागरिकों पर अवैध स्पाइवेयर के कथित इस्तेमाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं
करने के सरकार के आचरण पर भी चिंता व्यक्त की अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने इस तथ्य
को स्वीकार किया है कि भारतीयों को निशाना बनाया गया था. विशेषज्ञों ने कहा है कि
भारतीयों के फोन हैक किए गए हैं. उनका भारत के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं है. कल, जर्मनी ने भी इसे स्वीकार कर लिया था. लेकिन भारत सरकार स्वीकार नहीं करना
चाहती है. उन्होंने पूछा कि 2019 में, मंत्री ने व्यक्तियों को लक्षित करने के
बारे में बात की. सरकार ने क्या कार्रवाई की है? क्या
उन्होंने प्राथमिकी दर्ज की है? क्या उन्होंने एनएसओ के
खिलाफ कार्रवाई की है?
जासूसी के कथित
अवैध उपयोग की स्वतंत्र जांच के लिए याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना के समर्थन में, सिब्बल ने हवाला मामले का उल्लेख किया, जहां
आरोपों की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का एक पैनल गठित किया गया था.
उन्होंने कहा कि सरकार को
अपने दम पर एक समिति बनाने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? इसे पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण से दूर होना चाहिए।
कार्यकर्ता
जगदीप छोकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान इस मामले में उच्चतम
न्यायालय से अंतरिम राहत देने का आग्रह करते हुए कहा कि पेगासस वायर-टैपिंग की तरह
नहीं है. उन्होंने कहा कि पेगासस सिर्फ एक निगरानी तंत्र नहीं है. यह उपकरण में झूठे डेटा और
दस्तावेजों को प्रत्यारोपित (प्लांट) कर सकता है. उन्होंने कहा की यदि पेगासस को
किसी बाहरी एजेंसी द्वारा तैनात किया गया है, तो
नागरिकों की रक्षा करना भारत सरकार का कर्तव्य है. यदि इसे भारत सरकार द्वारा
तैनात किया गया है, तो मेरा निवेदन है, यह आईटी अधिनियम के तहत नहीं किया जा सकता है.
पत्रकार परंजॉय
गुहा ठाकुरता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी, जिनके नाम पेगासस लक्ष्यों की संभावित सूची
में थे, ने कहा कि सरकारी हलफनामे में बयान विरोधाभासी
हैं. एक जगह वे कहते हैं कि आरोप निराधार
हैं लेकिन दूसरी जगह वे कहते हैं कि आरोप गंभीर हैं और इसलिए वे एक समिति का गठन
कर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने ठाकुरता के फोन की जासूसी के तथ्य से
इनकार नहीं किया है. इस संबंध में उन्होंने सीपीसी के आदेश 8 नियम 3 का हवाला देकर कहा- जो कहता है कि
प्रतिवादी द्वारा इनकार विशिष्ट होना चाहिए और इनकार सामान्य नहीं होना चाहिए. उन्होंने
यह बताने के लिए नियम 5 आदेश 8 सीपीसी का भी हवाला दिया कि जिन तथ्यों को विशेष रूप से अस्वीकार नहीं
किया गया है, उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए. उन्होंने
कहा, “याचिकाकर्ता एक पत्रकार है. अगर जासूसी होती है, तो पत्रकारों का बोलने और अभिव्यक्ति का अधिकार प्रभावित होता है, न कि केवल निजता का अधिकार बल्कि इस मामले में भाषण पर प्रतिकूल प्रभाव का
सवाल जोर से और स्पष्ट रूप से उठ रहा है.
पत्रकार एसएनएम
आबिदी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश द्विवेदी ने कहा कि सरकार को एक समिति गठित
करने की अनुमति देना और याचिकाकर्ताओं को फोन सौंपने के लिए कहना एक गुप्त अभ्यास
होगा. उन्होंने कहा कि यह एक विश्वसनीय अभ्यास नहीं होगा जिसमें देश के लोगों का विश्वास होगा. अगर
सरकार ने कम से कम यह कहते हुए बयान दिया होता कि उसने मालवेयर का इस्तेमाल नहीं
किया है या याचिकाकर्ताओं पर जासूसी नहीं की है, तो यह
मामला खत्म हो गया होता. द्विवेदी ने आग्रह किया कि सरकार से यह कहने के लिए कहा जाना चाहिए कि उन्होंने स्पाइवेयर का
इस्तेमाल किया है या नहीं. दूसरा यह कि अदालत को सरकारी समिति के बजाय मामले की
जांच खुद करनी चाहिए.
माकपा के
राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने
अदालत से मामले की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक
विशेष जांच दल गठित करने का अनुरोध किया. वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस, एसएफएलसी द्वारा दायर याचिकाओं में पेश हुए
और कथित पेगासस को निशाना बनाया, उन्होंने कहा कि ऐसी
रिपोर्टें हैं जो संकेत देती हैं कि केंद्र सरकार और राज्य व्यापक इंटरसेप्शन में
लिप्त हैं. उन्होंने कहा कि अगर
ऐसा है, तो हम एक समिति बनाने और जांच करने के लिए गलत
करने वाले पर भरोसा नहीं कर सकते हैं.
17 अगस्त को, कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया
था जब केंद्र ने कहा था कि वह एक विशेषज्ञ समिति को विवाद के बारे में विवरण देने
के लिए तैयार है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ के
डर से इसे अदालत के सामने सार्वजनिक नहीं करता है. ऐसा करते समय, इसने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं के
जवाब में एक विस्तृत हलफनामा क्यों नहीं दायर किया जा सका.