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भारत की शिक्षा से मुंह चुराती धर्म को समर्पित ताकतवर सरकार

 

भारत की शिक्षा से मुंह चुराती धर्म को समर्पित ताकतवर सरकार

 

A powerful government dedicated to religion that turns a blind eye to India's education

भारत की जीडीपी, कुल बजट और शिक्षा बजट की कम वृद्धि

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि जब भारत की जीडीपी और केंद्रीय बजट का कुल व्यय (total expenditure) 2013-14 से 2025-26 तक लगभग 3 गुना बढ़ गया, तो शिक्षा बजट में इसी काल में केवल 62% की वृद्धि क्यों हुई? इसकी व्याख्या तथ्यों और कारणों के आधार पर करेंगे तो आप सरकारी दस्तावेजों, आर्थिक विश्लेषणों और हालिया रिपोर्टों से यह वृद्धि "जायज" ठहराना मुश्किल है।

1.   आंकड़ों की पुष्टि: वृद्धि की तुलना:-

जीडीपी की वृद्धि : 2013-14 में भारत की जीडीपी (current prices) लगभग 112.3 लाख करोड़ थी। 2025-26 के अनुमानित जीडीपी 325 लाख करोड़ के आसपास है (IMF अनुमान: 3.88 ट्रिलियन USD)। यह लगभग 3 गुना वृद्धि दर्शाती है। 2013-14 में केंद्रीय बजट का कुल व्यय 16.65 लाख करोड़ था। 2025-26 में यह बढ़कर 50.65 लाख करोड़ हो गया। यह लगभग 3.04 गुना वृद्धि है। जबकि शिक्षा बजट के तहत 2013-14 में शिक्षा मंत्रालय का आवंटन 79,451 करोड़ था। जो 2025-26 में यह 1,28,650 करोड़ हो गया है। यह निरपेक्ष रूप से 62% वृद्धि है (1,28,650 / 79,4511.62)। लेकिन कमाल की बात देखिये, बढ़ते युवा बल को मजबूत करने के लिए शिक्षा बजट बढाया जाना था लेकिन कुल बजट में शिक्षा का हिस्सा 2013-14 के 4.77% से घटकर 2025-26 में 2.54% रह गया।

धीमी वृद्धि के मुख्य कारण: क्या यह जायज है?

शिक्षा बजट की धीमी वृद्धि को पूर्ण रूप से "जायज" ठहराना कठिन है, क्योंकि NEP 2020 का लक्ष्य जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च करना है, जबकि कुल बजट में ही हिस्सा 2.54% रह गया है। कई रिपोर्ट्स इसे "मिस्ड अपॉर्चुनिटी" कहती हैं, जिससे स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, टीचर और डिजिटल संसाधनों की कमी हो रही है।   

शिक्षा का बंटाधार किया जाना तय है:-

राज्य स्तर पर खर्च: शिक्षा एक concurrent subject है, यानी केंद्र और राज्य दोनों जिम्मेदार। केंद्र का हिस्सा कुल शिक्षा खर्च का केवल 10-15% है; राज्य 85-90% खर्च करते हैं। कुल शिक्षा खर्च (केंद्र+राज्य) 2013 के 3.3% GDP से बढ़कर 2025 में 4.6% हो गया, जो जीडीपी वृद्धि के साथ कदम मिलाता है। लेकिन केंद्र की धीमी वृद्धि से राज्य पर बोझ बढ़ा, और कई राज्यों (जैसे बिहार, UP) में फंड की कमी है। शिक्षा जैसे अतिमहत्त्वपूर्ण विषय को सरकार प्राइवेट लोगों के लिए भरपूर मौके दे रहे है। सरकार NEP 2020 के तहत निजी निवेश को बढ़ावा दे रही है, जिससे सार्वजनिक खर्च कम रखा जा रहा है। सरकार के अनुसार इससे दक्षता बढ़ेगी (जैसे PPP मॉडल से नए IIT/IIM)। लेकिन इससे अमीर-गरीब का अंतर लगातार बढ़ रहा है। साथ ही, बजट का बड़ा हिस्सा सैलरी और रूटीन खर्च पर जाता है, न कि इनोवेशन पर।

COVID-19 से राजकोषीय घाटा बढ़ा (2020-21 में 9.2% GDP), जिससे सामाजिक क्षेत्रों (शिक्षा, हेल्थ) पर कटौती हुई। 2013-2025 के बीच वैश्विक मंदी, तेल कीमतें और जीएसटी से केंद्र की आय प्रभावित हुई, जिससे शिक्षा जैसी "नॉन-कैपिटल" क्षेत्रों पर कम फोकस।

 

क्या शिक्षा पर कम खर्च जायज है?

कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि यह "छिपी हुई सच्चाई" हैशिक्षा बजट में लगातार गिरावट से ब्रेन ड्रेन बढ़ा (0.4% GDP पर, वैश्विक औसत 5-6% से कम)। फंड की कमी से स्कूलों में लैब, डिजिटल क्लासरूम और टीचर ट्रेनिंग प्रभावित। यह लंबे समय में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर करेगा।

शिक्षा बजट को जीडीपी के 6% तक बढ़ाने की जरूरत है, जैसा 1986 की शिक्षा नीति और 2020 की NEP सुझाती है।

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