जीएसटी 2.0 - लुटेरे जब दयालु बनने को मजबूर हो जाए
डॉ.भूपेन्द्र सिंह मायचा
जीएसटी, जो इतने बदलावों के बाद भी नहीं बदली
भाजपा
की मोदी सरकार ने जीएसटी (Goods
and Services Tax) को भारत की कर प्रणाली में एक क्रांतिकारी सुधार
के रूप में हमेशा सराहा है। 2017 में लागू होने के बाद,
सरकार ने इसे "एक देश, एक कर" के
रूप में प्रचारित किया, जो पुरानी जटिल कर व्यवस्था को बदलकर
अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का दावा करता है। जीएसटी ने राजस्व संग्रह को इतना
बढ़ाया कि रहीसों का कॉर्पोरेट टेक्स भी पीछे छुट गया, बीजेपी-संघी
हमेशा कहते हैं कि इस जीएसटी कानून ने अनुपालन को डिजिटल बनाया और व्यापार को आसान
बनाया। फिर भी, 15 अगस्त 2025 को
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "नेक्स्ट-जनरेशन जीएसटी
रिफॉर्म्स" या जीएसटी 2.0 की घोषणा की है। वैसे देखा
जाए तो जीएसटी परिषद् की अब तक 55 मीटिंग हो चुकी हैं. इस जीएसटी कानून में 1500
से ज्यादा सुधार और संसोधन हो चुके हैं, लेकिन इतने बदलावों से भी इसमें बदलाव् की
बड़ी जरुरत महसूस कर रही है बीजेपी-संघी सरकार।, लेकिन सवाल
उठता है कि इतनी प्रशंसा के बावजूद जीएसटी 2.0 की जरूरत
क्यों पड़ी?
जीएसटी 2.0 क्या है? विस्तृत विवरण
बीजेपी-संघियों
के अनुसार जीएसटी 2.0
मौजूदा जीएसटी प्रणाली का एक उन्नत संस्करण है, जो मुख्य रूप से कर स्लैब्स की संख्या कम करने, कर
दरों को कम करने और अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर केंद्रित है। इनके
अनुसार-यह 2017 के जीएसटी को "गेम चेंजर" बनाने का
अगला कदम माना जा रहा है। सरकार के स्रोतों के अनुसार, यह
सुधार दिवाली (अक्टूबर 2025) तक लागू हो सकता है, और इसके लिए सितंबर में जीएसटी काउंसिल की बैठक में अंतिम फैसला लिया
जाएगा। वैसे पिछली जीएसटी काउंसिल दिसम्बर
2024 में हुई थी, बिना राज्यों से सलाह मशवरा के ये केंद्र
सरकार की घोषणा संघीय ढांचे को कमजोर किया जा रहा है।
मुख्य बदलाव और विशेषताएं:
- कर
स्लैब्स का सरलीकरण:
- मौजूदा
जीएसटी में चार मुख्य स्लैब्स हैं: 5%, 12%, 18% और
28% (प्लस कुछ वस्तुओं पर सेस)। जीएसटी 2.0 में 12%, 28% स्लैब को खत्म किया जा सकता है ।
- पेट्रोलियम
उत्पाद जीएसटी में जोड़ने की कोई संभावना दिखाई नही दे रही है।
- कर
दरों में कमी और प्रभावित वस्तुएं:
- आवश्यक
वस्तुओं (essentials)
जैसे किराने का सामान, दवाएं, कृषि उपकरण, साइकिल, शिक्षा
सामग्री और बीमा पर कर कम होगा। उदाहरण के लिए, कंडेंस्ड
मिल्क, फ्रोजन सब्जियां, फर्नीचर
आदि 12% से 5% पर आ सकते हैं।
- अनुपालन
और प्रक्रियाओं का सरलीकरण:
- जीएसटी
रिटर्न फाइलिंग,
रिफंड और क्लासिफिकेशन डिस्प्यूट्स को आसान बनाया जाएगा।
- एमएसएमई
के लिए अनुपालन लागत कम होगी, जो वर्तमान
में जटिल स्लैब्स के कारण परेशान हैं।
- दो
ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GoMs) - एक रेट रेशनलाइजेशन
पर और दूसरा सेस पर - इन बदलावों की समीक्षा करेंगे।
इसका मतलब है कि वर्तमान व्यवस्था
में हजारों कमियां हैं, वो भी 1500 बदलावों के बावजूद, वैसे इस जीएसटी को अरविन्द
सुब्रमन्यम ‘टेक्स आतंक’ कह चुके हैं. सरकार अभी भी बाज नहीं आ रही है और जबरदस्ती
दावा कर राही है कि ये सुधार गरीबों और मध्यम वर्ग को राहत देंगे, लेकिन 28% के स्लेब को खत्म करके 18% करने पर लग्जरी गुड्स पर कम कर से
राजस्व असंतुलित होगा।
इसकी जरूरत क्यों पड़ रही है?
- जटिलता
का समाधान:
मौजूदा स्लैब्स से कर चोरी, विवाद और
अनुपालन लागत अधिक है।
- राजस्व
और अनुपालन में सुधार: कम दरों से उपभोग बढ़ेगा,
जिससे टैक्स बेस विस्तार होगा और राजस्व हानि की भरपाई होगी।
- आर्थिक
चुनौतियां:
महंगाई, मंदी के संकेत और एमएसएमई की
मुश्किलों के बीच, ये सुधार उपभोग बढ़ाकर अर्थव्यवस्था
को बूस्ट देंगे।
- राज्यों
का सहयोग:
केंद्र राज्यों से सहयोग मांग रहा है, क्योंकि
जीएसटी संघीय प्रणाली है। अधिकांश भाजपा-शासित राज्य समर्थन करेंगे।
आलोचनात्मक व्याख्या
जीएसटी
2.0
मोदी सरकार की "रिफॉर्म, परफॉर्म,
ट्रांसफॉर्म" नीति का हिस्सा है। इस टेक्स में कमी की पूर्ति
कहाँ से होगी? यह सुधार राजस्व हानि का जोखिम उठाता है, क्योंकि
28% स्लैब के आइटम्स पर कर कम होने से केंद्र और राज्यों को
नुकसान हो सकता है। सरकार दावा करती है कि बढ़ा उपभोग भरपाई करेगा, लेकिन यह अनिश्चित है। एंटी-प्रॉफिटियरिंग प्रावधानों की कमी से व्यवसाय
कर कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा सकते, जैसा कि
डेलॉइट इंडिया के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है। पेट्रोलियम, बिजली
और शराब को जीएसटी से बाहर रखना एक बड़ी कमी है, क्योंकि ये
राजस्व के बड़े स्रोत हैं और महंगाई को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक रूप से,
यह भाजपा की चुनावी रणनीति लग सकती है, लेकिन
विपक्षी राज्यों (जैसे केरल, पश्चिम बंगाल) से विरोध हो सकता
है, जो संघीय ढांचे को कमजोर मानते हैं।

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