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आम आदमी के लिए मुलायमसिंह यादव का जमीनी अर्थशास्त्र

 

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मुलायमसिंह यादव का अर्थ चिंतन

यद्यपि पूर्व सरकार ने प्रदेश के आर्थिक विकास हेतु प्रयास किए, किंतु प्रदेश में बेहतर विकास दर हासिल नहीं हो सकी थी. प्रदेश में आर्थिक विकास का प्रणेता प्रदेश नेतृत्व अर्थात अर्थात मुख्यमंत्री होता है. प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व ही आर्थिक विकास की अलग-अलग रूपरेखा तय करता है. क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग चिंतन होता है और आर्थिक विकास के लिए रूपरेखा तय करने में चिंतन एक प्रमुख कारक के रूप में होता है.

नेताजी एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे थे और वहां से लेकर प्रदेश के नेतृत्व को संभाला था अतः पूर्व मुख्यमंत्रियों की तुलना में नेताजी का आर्थिक चिंतन भी कुछ अलग ही प्रकार का था. उनका मानना था कि प्रदेश को यदि वास्तविक अर्थों में समृद्धि प्रदान करनी है तो यह लक्ष्य केवल समाज के एक छोटे हिस्से पूंजीपतियों को समृद्ध बनाकर प्राप्त नहीं किया जा सकता, वरन इसके लिए आवश्यक होगा कि ऐसी आर्थिक नीतियां बनाई जाए. जिन से समूचा समाज प्रभावित एवं लाभान्वित हो तथा विशेष रूप से वह समाज जो सबसे निर्धन है, सबसे पीछे है और जिस व्यक्ति के पास ना जमीन है, ना गांव में आवास के लिए जमीन है और ना ही जंगल में कृषि के लिए जमीन है. ऐसे व्यक्ति का विकास सबसे आगे होना चाहिए. नेताजी के अनुसार प्रदेश की जनसंख्या का बड़ा भाग गांव में निवास करता है. जो निर्धन है, अशिक्षित हैं, बेरोजगार है. इसलिए उनका आर्थिक विकास सबसे पहला होना चाहिए. अपनी समाजवादी सरकार में पहली बार बजट का बड़ा हिस्सा लगभग 70 से 75% भाग गांवों की ओर मोड़ने का काम नेताजी ने ही किया था और उन्होंने गांव विकास की ओर का नारा दिया था. उन्होंने कहा था हमारे प्रदेश का विकास कृषि पर निर्भर है. जब तक हमारी कृषि हमारे गांव में धन संपन्न नहीं होंगे. तब तक प्रदेश सम्रद्ध नहीं हो सकता. हमारे उद्योग नहीं चल सकते. हमारे व्यापारी धनवान नहीं हो सकते. अतः हमारी सरकार ने समग्र विकास हेतु बजट में प्रावधान कर कुछ विशेष योजनाएं बनाई हैं. जिससे गांवों के विकास को नई दिशा मिलेगी और हम पुराने समय की भांति एक बार पुनः गांव में संपन्नता देख सकेंगे, तभी लोग लोहिया जी का सपना साकार होगा.

मुलायमसिंह जी के आर्थिक चिंतन का सर्वाधिक प्रबल पक्ष आम आदमी की समृद्धि है. उन्होंने गरीबी को बहुत निकट से भोगा है. उन्होंने अपने आर्थिक चिंतन और नीतियों से सबसे पहले उन क्षेत्रों को चुना, जो गरीबी-निर्धनता के प्राथमिक कारण थे. उनका मानना रहा है कि उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान सूबे को आर्थिक समृद्धि का रास्ता गांव, किसानों एवं खेतिहर मजदूरों से ही निकलेगा. नेताजी ने  भारी उद्योगों पर पर्याप्त ध्यान तो दिया लेकिन उनके उद्योग चिंतन का मुख्य केंद्र कुटीर और लघु उद्योग रहे. जो एक और तो ग्रामीण परिवेश से सीधे जुड़े रहे, दूसरे अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण कच्चा माल तथा ग्रामीण सीधे तौर पर इस्तेमाल कर सकते थे. नेताजी विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के बढ़ते दबाव को महसूस करते रहे हैं. समाजवादी पार्टी के अधिवेशन में आर्थिक प्रस्ताव को लेकर कहा था कि  विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का बढ़ता दबाव भारत की आर्थिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है और खास तौर से भारतीय कृषि को बर्बाद करने का अप्रत्यक्ष प्रयास है. इसी प्रस्ताव के जरिए उन्नत बीज के नाम पर केवल विदेशी कंपनियों के बीच खरीदना अनिवार्य होगा. भारतीय खपत का 30% विदेशी अनाज आयात करना अनिवार्य होगा तथा कृषि उत्पादन पर सरकार से मिलने वाले अनुदान को समाप्त करने की योजना है. इससे भारतीय कृषि सदैव के लिए विदेशी पूंजी की दासी हो जाएगी. नेता जी का साफ़-साफ़ कहना है कि आर्थिक नीति का निर्माण विदेशी दबाव में नहीं होना चाहिए.

नेताजी के आर्थिक चिंतन पर डॉ राम मनोहर लोहिया का जबरदस्त प्रभाव रहा है. उन्होंने लोहिया के विचारों से प्रेरणा लेकर एक समाजवादी अर्थ नीति देश- प्रदेश के सामने रखी थी. उनके अनुसार आर्थिक विकास के लिए ऐसी नीतियां बनाई जानी चाहिए. जिसमें अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिले. श्रम से पूंजी का निर्माण किया जाना चाहिए, विदेशी ऋण लेना बंद किया जाए तथा ब्याज की दर कम करने की जोरदार मांग भी की थी और बजट निर्माण श्रम से पैदा करने वाली पूँजी से होना चाहिए. अनर्गल खर्च पर रोक लगाने वाला बजट हो. भारत दुनिया का सबसे ज्यादा उर्वर भूमि का स्वामित्व रखता है तो विदेश से गेहूं का आयात नहीं किया जाना चाहिए. चाहे गेंहू के दाम विदेश में कितने ही कम क्यों न हो. बाहर से अनाज आयात करने के स्थान पर भूमि सेना का गठन करके बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर पैदावार बढ़ाई जानी चाहिए तथा कृषकों को कृषि यंत्र, बीज, खाद, पानी, सस्ती ब्याज दर पर देकर उपज बढ़ाने को प्रोत्साहन किया जाना चाहिए.

नेताजी के अनुसार कृषि प्रधान देश के कृषि प्रधान प्रदेश की आर्थिक उन्नति तब तक संभव नहीं है जब तक किसान और गांव के हित में बजट नहीं बनाया जाता है. उन्होंने अपनी सरकारों में अपने बजट के विकास वाले हिस्से का 70 से 80 फ़ीसदी हिस्सा गांवों के विकास पर खर्च किया था. उन्होंने ग्रामीणों राष्ट्रीय बैंकों में जमा गांव के लोगों की मेहनत का पैसा केवल गांव के विकास पर खर्च किए जाने की हिमायत की थी. दो फसलों के बीच कृषि उपज में 1 किलो पर 25 पैसे से अधिक का मूल्य का उतार-चढ़ाव हो तो सरकार उसे संतुलित करने को प्रयास करें. खेती और कारखाने के उत्पाद मूल्य पर श्रम पूंजी और जोखिम के आधार पर मूल्यों में संतुलित संबंध कायम किया जान चाहिए. कारखानों के उत्पाद लागत मूल्य से अधिक न हो पाए. नेताजी भारत में भयावह बढती बेरोजगारी के समाधान के लिए चिंतित थे. उन्होंने कहा था कि कुटीर तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का जाल बिछाकर बेरोजगारी को बड़े पैमाने पर युवा और ग्रामीण स्तर पर रोजगार दिया जा सकता है. बड़े कारखानों के उत्पाद/सामान, अगर विशेष तकनीकी और वैज्ञानिक महत्व का हो तो उनके उत्पादन को भारत के बाजार में बेचने पर रोक लगाई जाए तथा देश की अपार युवा शक्ति, जो बिना रोजगार के निरर्थक और असंगत साबित हो रही है. मूल अधिकारों में संवैधानिक संशोधन करके इस श्रम शक्ति का सही दिशा में उपयोग किया जाए. देश का कम से कम 70 फ़ीसदी श्रम उत्पादक हो जाती विदेशी भाषा और ऊंची के प्रति रुझान अधिक हो रहें हैं उन्हें समाप्त किया जाए और पैसे से पसीने की कीमत अधिक आंकी जाए. नेताजी का मानना है कि गलत आर्थिक नीतियों का परिणाम यह है कि 15 अगस्त 1947 में अंग्रेज हमारा कर्जदार था. अब हम दुनिया भर के कर्जे से लधे हैं.

नेताजी का कहना है कि जब भारत में सादगी को अपनाया गया, लोक भाषा को अपनाया गया, तब यहां खुशहाली रही और खुशहाली तब भी रही जब भारत की धन संपदा को अनेक बार लूट लूट कर बाहर ले जाया गया. लेकिन आजादी के बाद सादगी का स्थान बाह्य आडंबर और फिजूलखर्ची ने ले लिया है. छोटे-लघु-कुटीर उद्योगों का स्थान बड़े उद्योगों ने और जनशक्ति का स्थान मशीनों ने ले लिया है तो भारत का निर्माण करने वाली जनशक्ति बेकारी में बदल गई तथा खुशहाली का स्थान विफलता ने ले लिया. हमारी सरकारों ने देश की संरचना के अनुकूल नीतियों ने बनाकर पश्चिम की अंधाधुंध नकल की. जिससे स्थिति बद से बदतर होती गई. देश के अंदर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुनाफा कमाने की खुली छूट देकर देसी उद्योगों को अपंग बना दिया गया.

 

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