व्यापारियों के हितों के संरक्षण के लिए नेताजी मुलायमसिंह यादव की
सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए गए थे. नेताजी ने भारी उद्योगों की तुलना में लघु
एवं कुटीर उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया था. उनकी दृष्टि में कृषि को सर्वाधिक
महत्व दिया जाना चाहिए, इसके बाद लघु तथा कुटीर उद्योगों पर और फिर भारी उद्योगों
पर. उनके कार्यकाल में व्यापारियों के विकास हेतु अनेक कदमक उठाए गए थे. जो
अग्रलिखित हैं-
1.
बिक्री
कर समाप्त करके व्यापार कर लागू किया गया.
2.
आवश्यक
वस्तु अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने के आदेश जारी किए गए. व्यापारियों को उत्पीड़न समाप्त करने हेतु
खाद को छोड़कर अन्य सभी मामलों में धारा 37 आवश्यक वस्तु
अधिनियम का प्रयोग बंद कर दिया गया तथा मुकदमे वापस लिए गए.
3.
इंस्पेक्टर
को समाप्त किया गया और देश में ऐसा करने वाला उत्तर प्रदेश सबसे पहला राज्य था.
4.
मंडी
परिषद द्वारा व्यापारियों के लिए स्वीकृत समाधान योजना लागू की गई.
5.
निर्यात
पर उद्योगों की सुविधा के लिए निर्यात नीति घोषित की गई और उन्हें विशेष सुविधाएं
देने का निर्णय लिया गया.
6.
अच्छे
उद्योगों को प्रोत्साहन देने की योजना चलाई गई.
7.
अवस्थापना
सुविधाओं के विकास में निजी क्षेत्र को सहयोग लेने का निर्णय किया गया.
8.
औद्योगिक
विकास हेतु देने के लिए औद्योगिक सलाहकार परिषद का गठन किया गया.
9.
बुनकरों
की ऋण माफी के संबंध में 24 करोड़ की धनराशि प्रदान की गई.
10.
लघु
जल विद्युत परियोजनाओं को उद्योग का दर्जा देने का निर्णय लिया गया.
11.
सरकारी
विभागों को प्रदेश के अंदर सामान खरीदने पर व्यापार कर में छूट प्रदान की गई.
12.
'सुख-साधन’
नामक कर वापसी का फैसला किया गया.
13.
रोजगार
कार्यक्रम द्वारा उपेक्षित वर्ग के घटकों को रोजगार उपलब्ध कराया जाना सामाजिक दृष्टि
से उत्तम कार्य था.
14.
औद्योगिक
विकास और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए नेताजी श्री मुलायमसिंह की सरकार ने उत्तर
प्रदेश में चुंगी समाप्त करने का काम किया था. छोटे तथा कुटीर उद्योगों हेतु तथा
व्यापारियों की दृष्टि से व्यापारी कर की बिक्री कर की समाप्ति उनका सबसे लोकप्रिय
और सराहनीय कदम रहा.
15.
16.
इसके साथ-साथ नेताजी श्री मुलायमसिंह यादव की सरकार ने व्यवसायिक
शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र स्थापित कराये गए. व्यवसायिक शिक्षा को
प्रोत्साहित करने तथा छात्रों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए
विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद में एक उद्योगपति को नामित करने का निर्णय नेताजी की
सरकार के माध्यम से लिया गया था.
बीमार उपक्रमों के निष्पादन को बेहतर करने का निर्णय भी नेताजी की
सरकार के द्वारा ही किया गया. उपेक्षित वर्ग को लघु एवं कुटीर योजनाओं से होने
वाले लाभ देने के अंतर्गत रोजगार में आरक्षण की सुविधा देने का काम किया गया था. औद्योगिक
क्षेत्र हेतु किये कामों से कुटीर उद्योग और छोटे व्यापारियों को लाभान्वित करने
में सफल रहे.
नेताजी की सरकार द्वारा बारह सौ करोड रुपए की लागत से अलकनंदा नदी
पर 330 मेगावाट क्षमता
की श्रीनगर जल विधुत परियोजना (वर्तमान उत्तराखंड) के निर्माण के करार पर
हस्ताक्षर करके निर्माण कार्य को भविष्य की बिजली की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए
किया. औद्योगिक इकाइयों के भवन मानचित्र स्वीकार कराने की अनिवार्यता समाप्त कर दी
गई थी. औद्योगिक सलाहकार परिषद का गठन किया गया. औद्योगिक समस्याओं के शीघ्र
निस्तारण हेतु सिंगल विंडो की व्यवस्था करने का कार्य भी नेता जी की सरकार के
द्वारा किया गया था.
50करोड़ से अधिक पूंजी निवेश वाली इकाइयों हेतु एस्कोट अधिकारी नामित
करने की व्यवस्था इत्यादि महत्वपूर्ण कदम उठाए गए जिससे उद्योग के विकास में काफी
सहायता मिली. लघु और कुटीर उद्योगों पर उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया गया. बड़े
उद्योगों पर भी काम हुआ था. नेताजी के कार्यकाल में 20,000 करोड रुपए की पूंजी
निवेश हेतु प्रस्ताव पास हुए थे जिनमें प्रमुख थे-
v
चार
सौ करोड़ का गुजरात अंबुजा प्लांट
v
12 हजार करोड़ का बिरला समूह का कागज तथा सीमेंट प्लांट
v
पेट्रोसाइटिस
कॉरपोरेशन यूएसए का 12 सौ करोड़ का निवेश.
v
चीनी
तथा जर्मन बीएमडब्ल्यू का ग्रेटर नोएडा में प्रस्तावित कारखाना.
झूठे
और मनुवादी, नेताजी के विषय झूठ और प्रोपेगंडा फैलाकर उन्हें रुढ़िवादी और
परंपरावादी घोषित करने में लगा रहा है. उनके बारे में मनुवादी प्रोपेगंडा
संचालनकरता कहते है कि वे वैश्वीकरण और उद्योगपतियों के खिलाफ है. अगर झूठे तथ्य
को कसौटी पर कसें तो पाते हैं ये केवल
मनुवादी और झूथ्ये लोगों का अजेंडा मात्र हैं. नेताजी का खुद मानना है कि उत्तर प्रदेश में उद्योगों की बहुत
अधिक संभावना है, क्योंकि यहां कृषि एवं खनिज बहुतायत मात्रा में है. उन्होंने 18 अप्रैल 1990 में सहारनपुर में
एक विचार गोष्ठी के
उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए कहा था कि हम बड़े उद्योगों के विरोधी नहीं हैं,
हमारा मानना है, जहां हाथ से काम हो सकता, वहां उस काम के लिए बड़े उद्योग लगाने
की जरूरत नहीं है. हम जानते हैं कि बिजली उत्पादन करने के लिए कारखाने लगाने
पड़ेंगे, हथियार बनाना है तो कारखाने लगाने पड़ेंगे, रेल बनानी है, जहाज बनाना है
तो इसके लिए बड़े उद्योग लगाने ही पड़ेंगे. मैं इसका कोई विरोधी नहीं हूं. लेकिन
दियासलाई, साबुन, कपड़े के लिए कारखाना लगाने की जरूरत नहीं है. यह काम आम आदमी
द्वारा आसानी से किए जा सकते हैं और ऐसा करने से हजारों लाखों हाथों को काम मिल
सकता है. जबकि ये सब काम मात्र एक मशीन लगाकर एक ही व्यक्ति द्वारा कराये जाते हैं
तो इसी से बेरोजगारी बढ़ती है. अगर हमें बेरोजगारी मिटानी हैं तो इसके लिए कुटीर
उद्योग ही एकमात्र रास्ता है. हमारी उद्योग नीति की भी यही विशेषता है कि ऐसे
उद्योगों का विकास किया जाय, जिनमे रोजगार अधिक लोगों को प्राप्त हो. समाजवादी
सरकार चाहती है कि कृषि करने वाले लोगों की संख्या कम हो तथा कृषि की प्रति बीघा
पैदावार पढ़ें. और बाकि लोग लघु और कुटीर उद्योग में काम करके अपने लिए रोजगार
अर्जित करें. बड़े उद्योगों का अधिकांश लाभ शहरी क्षेत्र के लोगों को मिलता है.
जबकि पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक और गरीब की संख्या गांवों में रहती है. गरीबी और
अशिक्षा के कारण उन्हें अच्छी नौकरियां नहीं प्राप्त हो पाती हैं. इसलिए ये खेती
और मजदूरी में रह जाते हैं. उस पर यदि हम प्रकृति कुपित हो गए तो ऐसे दो वक्त की
रोटी प्रबंध करना भी मुश्किल होता है. इसके अतिरिक्त इन्हें वर्षपर्यंत रोजगार
नहीं दे पाते हैं. इनकी श्रम शक्ति बेकार चली जाती है. उत्तर प्रदेश में लघु और
कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन और उपेक्षित वर्गों को रोजगार प्राप्त होगा. जिससे
उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा उनका जीवन स्तर ऊंचा उठेगा, निर्धारित कम होगा,
जिससे उनमें सामाजिक और राजनीतिक चेतना आएगी और वे आने वाली पीढ़ियों को बेहतर
सुविधाएं प्रदान कर सकेंगे. बेकार श्रम को उत्पादक में परिवर्तित किया जा सकता है
तथा प्रदेश से अन्य प्रदेशों में श्रमिकों के पलायन को रोका जा सकता है. तथा इसको
सही दिशा देकर उसका उपयोग प्रदेश के आर्थिक विकास में किया जा सकता है.