उत्तर प्रदेश के तत्कालीन
विजनरी मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के सुयोग्य नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में
बिजली उत्पादन को केवल 5 साल के छोटी सी अवधि में दुगना करने का काम किया था । उत्तर
प्रदेश में आजादी के बाद 1947 से लेकर 2012 तक विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में
जितना काम हुआ, अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी सरकार
ने उसको दो-गुना करने का काम किया था तथा पारेषण और वितरण में भी राज्य सरकार ने 60
वर्ष की उपलब्धियों को लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक
बढ़ाया था । आजादी से लेकर वर्ष 2012 तक जहां उत्तर प्रदेश की
स्थापित क्षमता 8500 मेगावाट थी, उस
क्षमता को 17,000 मेगावाट पर पहुंचाने का काम समाजवादी
पार्टी के प्रगतिशील शासन काल में किया गया था । इस 17,000 मेगावाट को 21,000
मेगावाट तक पहुंचाने के लिए आधारभूत संरचना की नीव रखने का काम अखिलेश यादव सरकार
ने किया था, इस प्रकार समाजवादी सरकार के प्रगतिशील शासन में उत्तर प्रदेश में
उतनी ही उत्पादन क्षमता जोड़ी गई थी, जितनी आजादी के बाद 65
सालों में जोड़ी गई थी । इसके अतिरिक्त 8500 मेगावाट
बिजली को बिना किसी बाधा के उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए लगभग 22,000 करोड़ रुपये का निवेश करके 765 के.वी. क्षमता के चार, 400 केवी
क्षमता के 17, और 220 के.वी. क्षमता के 37 तथा 132
के.वी. क्षमता के 74
नए उपकेन्द्रों एवं संबंधित लाइनों का निर्माण अक्टूबर 2016 तक पूर्ण कर लिया गया था ।
तहसील को वाणिज्यिक
केन्द्र के रूप में विकसित करने हेतु उन्हें अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक
विद्युत आपूर्ति किया जाना सुनिश्चित किया गया था । इसके लिए राज्य सरकार ने 201
तहसीलों में 33/11 के.वी.
क्षमता के नए उपकेन्द्र बनाने के लिए 800 करोड़
रुपए की धनराशि राज्य के बजट से उ.प्र. पावर कारपोरेशन लिमिटेड को उपलब्ध करायी गयी थी । इनमें से 173 उपकेन्द्रों का निर्माण पूर्ण करके उन्हें ऊर्जीकृत किया गया था । तहसीलों
के जो उपकेन्द्र ऊर्जीकृत हो गए थे, वहां विद्युत आपूर्ति 2 घण्टे
बढ़ा दी गई थी । 33/11 के.वी. क्षमता के 556 नए उपकेन्द्रों का निर्माण कार्य
कराया गया तथा लगभग 850 उपकेन्दों की क्षमतावृद्धि का कार्य कराया
गया और बिजली उत्पादन को शानदार बनाया गया था ।
राज्य द्वारा
अविद्युतीकृत ग्रामों के विद्युतीकरण करने में विशेष उपलब्धि हासिल की गयी थी । उत्तर
प्रदेश की प्रगति को प्रथम स्थान पर पहुंचाने का काम समाजवादी सुप्रीमों के विजन
के माध्यम से बनाया गया था, इसमें उत्तर प्रदेश की 83.5 प्रतिशत
प्रगति रही, वहीं इसके बाद जो दूसरे नम्बर पर बिहार प्रदेश
था, उसकी मात्र 63.8 प्रतिशत प्रगति
रही एवं अन्य सभी राज्यों की प्रगति 50 प्रतिशत से भी कम रही
थी । वर्ष 2016-17 में 1,40,000 मजरों
के विद्युतीकरण को सुनिश्चित कराने का काम समाजवादी सरकार के प्रगतिशील नेतृत्व ने
कराया था, जिसमें से लगभग 1,00,000 मजरे/ग्रामों का
विद्युतीकरण अक्टूबर 2016 तक कराया गया था ।
उज्ज्वल डिस्काम विकास
योजना (उदय) के संदर्भ में विद्युत वितरण निगमों पर 30 सितम्बर,
2015 को बकाया 53,935 करोड़ रुपए के ऋणों के
सापेक्ष राज्य सरकार द्वारा 75 प्रतिशत अंशपूजी के रूप में 39,134
करोड़ रुपए के ऋण 15 वर्षीय बंधपत्र जारी करते
हुए अधिग्रहीत कर लिया गया था । अवशेष लगभग 14,000 करोड़ रुपए
के ऋण विद्युत वितरण निगमों द्वारा वहन किए जा रहे हैं ।
विद्युत वितरण निगमों के पास अवशेष लगभग 14,000 करोड़ में से 11,000 करोड़ रुपए के लिए बंधपत्र निर्गत
किए जाने हैं परन्तु भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इन ऋणों को एन.पी.ए. की श्रेणी में रखे जाने
के कारण बैंकों द्वारा इसमें रुचि नहीं दिखाई जा रही है। इसका तुरन्त समाधान अति
आवश्यक है जिससे कि विद्युत वितरण निगम अपने ब्याज एवं पुर्नभुगतान व्यय को कम कर
सके।
कोल इण्डिया द्वारा मार्च, 2016 में कोयले के मूल्य
में लगभग 170 रुपए प्रति मीट्रिक टन की वृद्धि की गयी एवं
अतिरिक्त कोल रॉयल्टी तथा क्लीन एनर्जी सेस के माध्यम से भी क्रमशः 24 रुपए प्रति मीट्रिक टन तथा 200 रुपए प्रति मीट्रिक
टन की वृद्धि हुई । कोयले की उपलब्धता एवं उसकी लागत का सीधा सम्बन्ध बिजली की लागत
से है । निश्चय ही उपरोक्त वृद्धियों के कारण उत्पादित ऊर्जा के मूल्य में वृद्धि हुई
।
उत्तर प्रदेश में
विद्युत वितरण कम्पनियां भारी वित्तीय घाटे में हैं तथा उत्तर प्रदेश में विद्युत
उत्पादन की लागत कम करने के लिए अतिरिक्त कोयले की उचित मूल्य पर व्यवस्था करना
नितांत आवश्यक है । एक विशेष पैकेज के रूप में प्रदेश में वर्ष 2009 के बाद प्रारम्भ हुई परियोजनाओं के लिए कोयले का लिंकेज 65 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया जाए । साथ ही,
निजी उत्पादन केन्द्रों यथा रोजा, बजाज,
लैन्को, जयप्रकाश के लिए 100 प्रतिशत लिंकेज स्वीकृत किया जाना भी आवश्यक होगा, जिससे
बिजली की लागत कम होगी तथा वितरण कम्पनियों की हानियों को शीघ्रता से समाप्त करना
सम्भव होगा ।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं कुछ अन्य राज्यों ने निजी
क्षेत्र के साथ परियोजनाएं स्थापित करने के समझौते किए थे, किन्तु
इन राज्यों में आवश्यकता से अधिक बिजली उपलब्ध होने के कारण वे अपने अंश की बिजली
इन परियोजनाओं से क्रय नहीं कर रहे हैं । यह सरप्लस बिजली वे उत्तर प्रदेश जैसे
आवश्यकता वाले राज्यों को बेच सकते हैं, किन्तु इस सम्बन्ध
में नीति विषयक निर्देश विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा
जारी करने होंगे । उन्होंने अनुरोध किया कि यह निर्देश शीघ्र जारी कर दिए जाएं।
विन्ध्यांचल परियोजना
उत्तर प्रदेश में ही स्थापित है तथा इस परियोजना की सरप्लस बिजली उत्तर प्रदेश
क्रय करने को इच्छुक है तथा इस सम्बन्ध में विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार को अनुरोध भी किया जा चुका है । चूंकि इस परियोजना से उत्पादित
विद्युत सस्ती है, अतः यदि इस परियोजना की सरप्लस बिजली
उत्तर प्रदेश को आवंटित कर दी जाए तो उत्तर प्रदेश में विद्युत आपूर्ति बढ़ायी जा
सकती है तथा इससे विद्युत की औसत लागत भी कम होगी ।
कुछ समय पूर्व केन्द्र
सरकार यह निर्णय लिया गया है कि उत्तर प्रदेश में स्थापित एनटीपीसी की सिंगरौली
परियोजना की बिजली सोलर पावर के साथ बन्डलिंग करके बेची जाएगी । वर्तमान में
सिंगरौली पावर स्टेशन की बिजली लगभग 1.50 रुपए प्रति यूनिट
की दर पर मिलती है । बन्डलिंग के पश्चात बिजली की यह दर लगभग 3.50 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी । इससे उत्तर प्रदेश की औसत विद्युत क्रय लागत
में भारी वृद्धि होगी । उत्तर प्रदेश की विद्युत वितरण कम्पनियों की वर्तमान
वित्तीय स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार के इस निर्णय पर पुर्नविचार की आवश्यकता
है ।
ऊर्जा राज्य मंत्री
ने बताया कि विद्युत उपभोक्ताओं को निर्वाध 24 घण्टे विद्युत
आपूर्ति प्रदान किए जाने हेतु सभी यथा सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं, किन्तु केन्द्र सरकार द्वारा दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के
अंतर्गत प्रस्तावित योजनाओं की स्वीकृति न मिलने के कारण एक व्यवधान उत्पन्न हो
रहा है। प्रदेश की वितरण कम्पनियों द्वारा दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के
अंतर्गत लगभग 19000 करोड़ रुपए की योजनाएं प्रस्तावित की गयी
थीं, जिसके विरूद्ध मात्र 6946 करोड़
रुपए मूल्य की योजनाएं आर.ई.सी. द्वारा स्वीकृत की गयी थी । इस प्रकार से इस योजना
के अंतर्गत लगभग 11827 करोड़ रुपए की 63 प्रतिशत की स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई थी ।
इस योजना के अंतर्गत
ग्रामीण क्षेत्र के 33/11 के0वी0
उपकेन्द्रों से निकलने वाले पोषक के विभक्तीकरण हेतु प्रदेश सरकार
द्वारा 7084 करोड़ रुपए की एक महत्वाकांक्षी योजना प्रेषित की
गई थी, जिसमें से केन्द्र सरकार द्वारा मात्र 3258 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की जा चुकी है, जिससे
प्रदेश के 07 शहरों के ग्रामों में 11 केवी
पोषकों के विभक्तीकरण का कार्य पूर्ण रूप से तथा 31 जनपदों
में आंशिक रूप से प्रारम्भ किया जा रहा था । शेष कार्य के लिए केन्द्र सरकार से 3827
करोड़ रुपए की धनराशि उपलब्ध कराए जाने पर सभी जिलों में यह कार्य
पूर्ण रूप से हो सकेगा। ऊर्जा राज्य मंत्री ने कहा था कि अविद्युतीकृत उपभोक्ताओं
के विद्युतीकरण करने हेतु 4123 करोड़ रुपए योजना प्रस्तुत की
गई थी, जिससे लगभग 02 करोड़ उपभोक्ता
विद्युतीकृत किए जा सकते थे, जिसके विरूद्ध 92 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत हुई है। यदि केन्द्र सरकार द्वारा यह धनराशि
उपलब्ध करा दी जाती है तो प्रदेश के सभी उपभोक्ताओं को संयोजन देकर विद्युतीकृत
किया जा सकेगा ।
दिसंबर 2016 में,
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन विजनरी मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने
रुपये की लागत वाली बिजली परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया थ । ये 52,437
करोड़ रूपया की परियोजना थी । ये परियोजनाएं बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण के सभी तीन पहलुओं को कवर करती हैं ।
भविष्य
की बिजली आवश्यकताओं को देखते हुए इन परियोजनाओं में 33,000 मेगावाट
की कुल क्षमता वाले तीन थर्मल पावर प्लांट शामिल थे, जिनका निर्माण
राज्य में किया जाना था । जवाहरपुर थर्मल पावर प्लांट, एक
ग्रीनफील्ड परियोजना है, जिसमें 1,320 मेगावाट
की उत्पादन क्षमता होगी । यह प्रोजेक्ट 10,566 करोड़ रुपये
की लागत से बनाया जा रहा था । दो अन्य परियोजनाएं; ओबरा सी
पावर प्रोजेक्ट और हार्डगंज एक्सटेंशन थी ।