समाजवादी सरकार द्वारा
ग्रामीण पर्यटन हेतु
‘ग्रामीण पर्यटन नीति’
समाजवादी
सरकार द्वारा पर्यटन हेतु ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत वाले गांव पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया जाना-
उत्तर
प्रदेश के गांव सदियों से आकर्षण का केंद्र रहे हैं,
विशेष रूप से विदेशी पर्यटक यहां के गांवों में रह कर वहां के प्राकृतिक
सौंदर्य, आबोहवा, खेती किसानी के अलावा
सबसे अधिक जो चीज देखना चाहते हैं, वह हैं इन गांवों की संस्कृति,
ऐतिहासिक स्मारक, परम्परागत कला, हस्तशिल्प और सम्रद्ध विरासत । उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार के विजनरी
मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा उत्तर प्रदेश के गांवों को करीब से देखने की
विदशी पर्यटकों की इस चाहत को ध्यान में रखते हुए ही राज्य में ‘ग्रामीण पर्यटन
नीति’ तैयार कराई थी, जिसे मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में सम्पन्न
कैबिनेट से मंजूरी प्रदान की गयी थी और सभी जिलाधिकारियों को गांव चिन्हित करने की
प्रक्रिया आरंभ करने के निर्देश भी जारी कर दिए गए थे । महानिदेशक पर्यटन श्री अमृत
अभिजात ने बताया था कि प्रदेश के ग्रामीण पर्यटन के विकास के लिए मूलभूत अवस्थापना
विकास की वृहद योजना तैयार की गई है, जिसके तहत हर वर्ष तीन गांवों का विकास किया
जाएगा।
ग्रामीण पर्यटन नीति का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण
क्षेत्रों में पर्यटन जनित रोजगार को बढ़ावा देने के साथ-साथ परम्परागत कला,
कौशल विकास हस्तशिल्प और ग्रामीण दस्तकारी को भी बढ़ावा देना था और
ग्रामीण अंचलों की प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण एवं विकास में भी ग्रामीण पर्यटन
नीति अहम भूमिका निर्वहन करनी थी। साथ ही ग्रामीण लोगों के पलायन को रोकने में भी ‘ग्रामीण
पर्यटन नीति’ कारगर साबित हो । ग्रामीण पर्यटन की द्रष्टि से उत्तर प्रदेश राज्य
में ऐसे ग्रामों को चिन्हित किया गया था, जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं उपलब्ध थी
। उसी गांव को चिन्हित किया जाएगा जो किसी मुख्य पर्यटन स्थल के करीब हो और उस
गांव ने अपने इतिहास, कला, परंपरा,
व्यंजन विरासत, वास्तुकला और प्राकृतिक
द्रश्यों में ख्याति प्राप्ति की हो। उन
गांवों को प्राथमिकता दी जाएगी जो स्वयं के संसाधनों से युक्त हों, जैसे सांसद, विधायक निधि, ग्राम
विकास योजना से प्राप्त धनराशि से उस गांव का विकास किया गया हो ।
चयनित गांव के पर्यटन विकास के लिए समाजवादी
राज्य सरकार ने एक करोड़ रुपए धनराशि का प्रबंध किया था । विशेष परिस्थिति में
जिलाधिकारी, क्षेत्रीय पर्यटक
अधिकारी तथा ग्राम प्रधान की अनुशंसा के आधार पर इस योजना को विभिन्न चरणों में
अधिकतम दो वर्ष में पूरा किया जाना । योजना की लागत का अधिकतम 10 प्रतिशत कौशल विकास तथा ग्राम स्तर पर गाइड प्रशिक्षण एवं उपकरणों पर खर्च
करना, तथा जो गांव हस्तशिल्प कला एवं बुनकरों, हथकरघा की
बहुलता वाले हों, उन गांवों के वित्तीय पोषण की व्यवस्था भी
करने का प्रस्ताव दिया गया था । जिन गांवों को चयनित किया जाना था, उनमें एक
पर्यटन स्वागत केंद्र, पर्यटन स्थलों पर गांव में साइनेज की
स्थापना, पर्यटन स्थलों पर प्रकाश की व्यवस्था, प्रसाधन, पेयजल और मार्ग की व्यवस्था पहली
प्राथमिकता, इको फ्रेंडली परिवहन व्यवस्था की उपलब्धता कराने की योजना थी । हवेली,
पुरातात्विक, ऐतिहासिक और परम्परागत महत्व
वाले स्थलों का पुनरुद्धार कराकर उन्हें पर्यटन के लिए तैयार करना था । जिस गांव
को चिन्हित किया जाना था, उसके चारों ओर सुधार कर लैंडस्केपिंग, पार्कों का विकास तथा चार दिवारी भी तैयार कराई जानी थी । हस्तकला आदि की
बिक्री के लिए भी व्यवस्था करने की योजना इस निति के तहत किया जाना था । इस नीति
की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि 1950 से पूर्व बने महल और
हवेलियों को भी पर्यटकों के लिए विकसित किया जाना था, जिसके तहत उनमें प्रसाधन,
पेयजल और भवन के पुनरुद्धार के लिए पांच लाख रुपए की धनराशि उपलब्ध करवाना
था । इसके अंतर्गत अधिकतम चार कक्षों या निजी संग्रहालयों और गैलरी के निर्माण के
लिए भी धनराशि, तैयार कराई गई इन इकाइयों को पेइंग गेस्ट योजना के तहत पंजीकरण
कराना अनिवार्य था तथा इन्हें कम से कम पांच वर्ष तक चालू रखना भी अनिवार्य किया
गया था । इस पूरी नीति के सञ्चालन के लिए ‘ग्रामीण पर्यटन प्रबंधन समिति’
(आरएमटीसी) का गठन किया गया था, जो इन तमाम कार्यों का अनुश्रवण कार्य करती । ‘ग्रामीण
पर्यटन प्रबंधन समिति’ के अध्यक्ष सम्बंधित जिले के जिलाधिकारी तय किये गए थे और
हर माह इसकी समीक्षा बैठक का आयोजन किया जाना था ।