अखिलेश यादव की लावारिस छुट्टा पशुओं हेतु ‘‘अन्ना प्रथा उन्मूलन योजना Akhilesh Yadav's "Anna Pratha Abolition Plan" for Unclaimed Animals
समाजवादी सन्देश जनवरी 24, 2022
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लावारिस छुट्टा पशुओं हेतु ‘‘अन्ना प्रथा उन्मूलन योजना
परिषद
द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत प्रस्तावित योजनाओं ‘‘बुन्देलखण्ड में विशेष रूप में झांसी
और चित्रकूट में किसानों द्वारा पशुओं को लावारिस छुट्टा छोड़ देने की प्रवत्ति पर
अंकुश लगाने उनके पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराने, पशुओं को
भूख से बचाने के लिए उनके संरक्षण संवर्धन एवं सुधार हेतु ‘‘अन्ना
प्रथा उन्मूलन योजना शुरू की जा रही थी । इस योजना को पूरे बुन्देलखण्ड में चलाने का
काम समाजवादी सरकार ने कराया था।
गोवंशीय
पशुओं में सेक्स्ड सीमेन का उपयोग डीएफएस मझरा, लखीमपुर खीरी का सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण किया गया था,
राजकीय पशुधन एवं कृषि प्रक्षेत्रों का सुदृढ़ीकरण करते हुए स्वदेशी
प्रजातियों का संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा था । किसानों के पशुओं के लिए
जोखिम प्रबन्धन एवं पशुधन बीमा योजना का क्रियान्वयन परिषद द्वारा किया जा रहा था ।
समाजवादी सरकार के नेतृत्व में उ.प्र. पशुधन विकास परिषद
द्वारा उत्तर प्रदेश की स्थानीय गायों की नस्ल गंगातीरी गाय का रजिस्ट्रेशन भारत
सरकार में कराया गया था । जिसका रजिस्टेशन न. इण्डिया कैटल-2003-गंगातीरी -03039
है । समाजवादी सरकार के सहयोग से वर्ष 2014-15 में प्रदेश में प्रथम बार उक्त नस्ल
गंगातीरी गाय का रजिस्ट्रेशन कराने से उ.प्र. पशुधन विकास परिषद को सफलता अर्जित
हुई थी ।
समाजवाद और सामाजिक न्याय की संकल्पना बहुत व्यापक जिसके अन्तर्गत ‘सामान्य हित’ के मानक से सम्बन्धित सब कुछ आ जाता है जो गरीब ,पिछड़े और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा से लेकर निर्धनता और निरक्षरता के उन्मूलन तक सब कुछ पहलुओं को द्वंगित करता है ।
यह न केवल विधि के समक्ष समानता के सिद्धान्त का पालन करने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से सम्बन्धित है, जैसा हम पश्चिमी देशों में देखते हैं, बल्कि इसका सम्बन्ध उन कुत्सित सामाजिक कुरीतियों जैसे द्ररिद्रता, बीमारी, बेकारी और भुखमरी आदि के दूर करने से भी है जिसकी तीसरी दुनिया के विकासशील देशों पर गहरी चोट पड़ी है ।
सामाजिक न्याय अवधारणा का अभिप्राय यह है कि नागरिक, नागरिक के बीच सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेद न माना जाए और प्रत्येक व्यक्ति को अन्य विकास के पूर्ण अवसर सुलभ हों । सामाजिक न्याय की धारणा में एक निष्कर्ष यह निहित है कि व्यक्ति का किसी भी रुप में शोषण न हो और उसके व्यक्तित्व को एक पवित्र सामाजिक न्याय की सिद्धि के लिए माना जाए मात्र साधन के लिए नहीं ।
सामाजिक न्याय की व्यवस्था में सुधारु और सुसंस्कृत जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों का भाव निहित है और इस संदर्भ में समाज की राजनीतिक सत्ता से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने विद्यार्थी तथा कार्यकारी कार्यक्रमों द्वारा क्षमतायुक्त समाज की स्थापना करें ।