भारतीय समाजवाद के आधुनिक पुरोधा लोहिया की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते नेताजी मुलायमसिंह यादव
राजनीति
में उनकी शुरूआत 1961 में के.के. डिग्री कॉलेज इटावा के
छात्र सभा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद हुई. छात्र सभा के अध्यक्ष चुने जाने के
पश्चात वे क्षेत्र के प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ कैप्टन अर्जुन भदौरियाजी के साथ जुड़
गए. उस समय जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व श्री नत्थूसिंह यादव कर रहे थे.
सन 1962 के विधानसभा चुनाव में नेताजी ने श्री नत्थू सिंह जी
की ओर से चुनाव अभियान में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. चुनाव में प्राप्त विजय ने
श्री नत्थूसिंह जी एवं मुलायम सिंह जी के संबंधों में निकटता ला दी तथा श्री
नत्थूसिंह के आशीर्वाद से 1967 के विधानसभा चुनाव में नेताजी
जसवंत नगर विधानसभा सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे.
1967 से शुरू हुई राजनीतिक यात्रा आज तक चल रही है. उतर प्रदेश में वे राम नरेश
यादव के मंत्रिमंडल में सहकारिता मंत्री बने. सहकारिता मंत्री के रूप में उन्होंने
सामाजिक उत्थान के अनेक कार्य किये और सहकारिता मंत्री के रूप समाज के सबसे निचले
वर्गों के लिए अनेक योजनाएं बनाई और उन्हें जमीन पर कार्यान्वित करने का काम किया
था. 1980 में नेताजी को लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त
किया गया. इसी अवधि में उन्होंने विधानसभा में विपक्ष के नेता का भी पदभार संभाला.
1985 के चुनाव में विधानसभा के लिए चुने गए. उनके अनुभव एवं
कार्यशैली के कारण उन्हें नेता विरोधी पक्ष की कुर्सी प्रदान की गई, लेकिन लोकदल की आंतरिक कलह और गुटबाजी के कारण उन्होंने 1987 को यह पद छोड़ दिया. इसी दौर में उन्होंने विपक्ष की एकजुटता बनाए रखने के
लिए ‘क्रांतिकारी मोर्चा’ का गठन किया
तथा संपूर्ण प्रदेश का दौरा करने के बाद लखनऊ में एक ऐतिहासिक रैली आयोजित की थी.
जिससे उनका राजनीतिक कद कई गुना बढ़ गया. बाद में जब जनता दल का निर्माण हुआ तो
नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव की संगठन क्षमता, संघर्षशील
प्रवृत्ति तथा लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए उन्हें जनता दल का प्रदेश अध्यक्ष
नियुक्त किया गया.
1989 के विधानसभा चुनाव में नेताजी के कुशल और जुझारू नेतृत्व में जनता दल ने
अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की. जनता दल को 425 में से 204
सीटें प्राप्त हुई. पार्टी में काफी विरोध के पश्चात मुख्यमंत्री पद
हेतु नेताजी मुलायमसिंह यादव के नाम पर सहमति बनी और 5 दिसंबर
1989 को लखनऊ के के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में आम आदमी की
सरकार के गठन हेतु उत्सव के वातावरण में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. ऐसा ही
शपथ ग्रहण समारोह नयी पीढ़ी ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री केजरीवाल
के मुख्यमंत्री बनने के समय देखा होगा. वैसा ही कुछ नजारा नेताजी के सपथ ग्रहण
समारोह में देखा गया था. मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद नेताजी मुलायमसिंह यादव
की पहली प्रतिक्रिया थी कि लोहिया का सपना पूरा हो गया है, एक
किसान का बेटा मुख्यमंत्री बना है, जनता के इस प्रकार उत्साह
से मैं भाव विहल हो उठा हूं. यह उनके प्रति मेरे दायित्व का बोध करा रहा है. मैं
उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करुंगा. नेताजी श्री मुलायमसिंह यादव
ने अपने मुख्यमंत्री काल में गरीब-दलित-पिछड़ों के विकास हेतु अनेक कार्यक्रमों की
घोषणा की और तत्परता से उन्हें लागू कराने का काम भी किया था. अपने कार्यक्रमों
में उन्होंने गांव-निर्धनों-पिछड़ों-दलितों-अल्पसंख्यकों का विशेष ध्यान रखा था.
नेताजी की सरकार में पिछड़े-दलितों और अल्पसंख्यकों को सरकार से लेकर जमीन तक हिस्सेदारी
देने का काम किया था. उनकी सरकार में दलित-पिछडे वर्ग के सबसे ज्यादा मंत्री और
विभिन्न आयोगों में चेयरमैन बनाने का काम पहली बार किया गया था. लेकिन यह प्रयास
उस समय केंद्र सरकार की अस्थिरता के चलते पूरा नहीं हो पाया. एक कुशल राजनीतिज्ञ
के रूप में उन्होंने त्यागपत्र देते हुए विधानसभा भंग करने की घोषणा कर डाली थी.
1991 के चुनाव सभा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की कल्याण सरकार बनी,
जो राम-मंदिर विवाद के कारण बर्खास्त कर दी गई थी. अगला चुनाव श्री
मुलायम सिंह यादव जी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था. 4 दिसंबर 1993 को 4 साल में
दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला. अन्य कार्यों के साथ-साथ इस बार भी उन्होंने
कार्यक्रमों द्वारा दलित-अल्पसंख्यक - पिछड़े वर्ग और गरीब समाज का विशेष ध्यान
रखा, किंतु बाद में बसपा से मतभेद हो जाने के कारण श्री
मुलायम सिंह जी को इस्तीफा देना पड़ा और एक बार पुनः कार्यकाल पूरा करने का समय
नहीं मिला.
समाजवादी
नेता नेताजी मुलायम सिंह यादव के पिता का नाम श्री सुधर सिंह था और उनकी माता का
नाम मूर्ति देवी था. नेताजी मुलायम सिंह चार भाई-बहन है. नेताजी के पिता उन्हें
पहलवान बनाना चाहते थे. उनका विवाह मालती देवी के साथ हुआ था. जिनसे उन्हें उत्तर
प्रदेश के विजनरी मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों
पुत्र अखिलेश यादव जी का जन्म 1 जुलाई, 1973 को हुआ. लेकिन श्री अखिलेश यादव के
बाल्यकाल में ही उनकी माताश्री मालती देवी का स्वर्गवास हो गया था. ‘समाजवादी पार्टी’ के संस्थापक नेताजी पिछले 59
सालों से राजनीति में सक्रिय हैं. अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को
मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने के बाद मुलायम सिंह
ने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से ही अपने राजनीतिक सफर
की शुरुआत की थी. नेताजी जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक नियुक्त
किए गए थे. विधायक का चुनाव भी ‘सोशलिस्ट पार्टी’ और इसके बाद फिर ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ से लड़ा था. इसमें उन्होंने जीत भी हासिल की थी. इससे पहले वे स्कूल में
शिक्षक पद पर कार्यरत थे, जिससे उन्होंने इस्तीफा दे दिया
था.
कर्पूरी ठाकुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए नेताजी
1977 में नेताजी मुलायमसिंह यादव पहली बार सहकारिता मंत्री बने. उस समय
कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी.1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और इसके बाद फिर चौधरी
चरण सिंह के लोकदल में अध्यक्ष चुने गए और विधान सभा चुनाव हार गए. चौधरी चरणसिंह
जी ने उन्हें विधान परिषद में मनोनीत करवाया, जहाँ पर वे
प्रतिपक्ष के नेता भी रहे. 1967 में मुलायम सिंह पहली बार
उत्तर प्रदेश, विधान सभा के लिए चुने गए थे. शुरुआत से ही
मुलायमसिंह यादव दलितों,अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों से
जुड़े मुद्दों को उठाते रहे. अयोध्या में बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर हिन्दू
कट्टपंथी संगठनों के मुखर विरोध के बावजूद नेताजी ने संविधान में वर्णित सभी
विषयों और शासन की कानून व्यवस्था के प्रति अपनी विशिष्ट प्रतिबद्धता को लेकर कोई
कोताही नहीं बरती. 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद देश
की राजनीति सांप्रदायिक आधार पर बँट गई. हालाँकि यह मनुवादियों की एक सोची समझी
साजिश थी, मंडल आयोग की पिछड़ों को लेकर की गयी सिफारिशों को
लागु नहीं होने देने के लिए बीजेपी-आरएसएस ने कमंडल को शुरू कर दिया, जिसका नुक्सान अगले 30 साल तक पिछड़े-दलितों और
अल्पसंख्यकों के विकास के विमर्श के मुद्दे गौण होते गए. आज भी पिछड़े-दलित अपने
विकास के मुद्दों को लेकर लाचार हैं. 1993 में नेताजी श्री
मुलायम सिंह यादव ने सांप्रदायिकता को दूर करने के लिए ‘बहुजन
समाज पार्टी’ के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव
लड़ा था. और साम्प्रदायिकता फ़ैलाने की मास्टर ‘भारतीय जनता
पार्टी’ को सत्ता से बाहर कर दिया. नेताजी श्री मुलायम सिंह
यादव ने कांग्रेस और जनता दल दोनों का साथ लिया और सरकार बनाई. जून 1995 तक वे मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया.
नेताजी मुलायम सिंह यादव छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए
नेताजी
श्री मुलायम सिंह यादव तीसरी बार 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और विधायक बनने के लिए उन्होंने 2004
की जनवरी में गुन्नौर सीट से चुनाव लड़ा था, जहाँ
उन्होंने रिकॉर्ड बहुमत से विजय प्राप्त की थी. कुल डाले गए मतों में से 92
प्रतिशत मत उन्हें प्राप्त हुए थे, जो आज तक
विधानसभा चुनाव का एक शानदार रिकॉर्ड है। 1996 में मुलायम
सिंह यादव ग्यारहवीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस
समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी, उसमें मुलायम सिंह भी
शामिल थे और देश के रक्षामंत्री बने थे. यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं.
रक्षा मंत्री रहते नेताजी ने सैनिकों के लिए बहुत काम किये. उस दौरान नेताजी श्री
मुलायम सिंह यादव को देश का प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी. प्रधानमंत्री पद
की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, लेकिन धरती पुत्र नेताजी
प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. इसके बाद चुनाव हुए तो नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव ने
दो लोकसभा क्षेत्रों संभल और कन्नौज से जीते थे. केंद्रीय राजनीति में नेताजी श्री
मुलायम सिंह यादव का प्रवेश 1996 में हुआ था जब काँग्रेस
पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई थी. श्री एच. डी. देवेगौडा के
नेतृत्व वाली इस सरकार में वे रक्षामंत्री बने लेकिन यह सरकार भी ज़्यादा दिनों तक
नहीं चल पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो
गई. लेकिन इस सरकार ने पिछड़े और दलित-वंचितों के लिए बहुत किये थे. नेताजी श्री
मुलायमसिंह यादव की राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में अटूट आस्था रही है. भारतीय
भाषाओं, भारतीय संस्कृति और शोषित पीड़ित वर्गों के हितों के
लिए उनका निरंतर संघर्ष जारी रहा है. उन्होंने ब्रिटेन, रूस,
फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड,
पोलैंड और नेपाल आदि देशों की भी यात्राएँ की हैं. लोकसभा से नेताजी
श्री मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं सोलहवी लोकसभा के सदस्य चुने गये.
लोकतंत्र में विपक्षी नेताओं के साथ भाईचारा और
प्रेम सदभाव का रिश्ता रखने वाले नेता जी समाजवादी पार्टी के समर्थकों में उनके
असली हिमायती के रूप में जाने जाते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी से उनके व्यक्तिगत
रिश्ते बहुत अच्छे रहें थे. नेताजी अपनी पार्टी के नेताओं-समर्थकों को सबसे ज्यादा
सम्मान देने वाले नेता रहें हैं. बूथ स्तर के पदाधिकारी को भी नेता जी ‘नाम लेकर सम्बोधन करने की आश्चर्यजनक यादाश्त के
स्वामी हैं.
सदस्यता-
• विधान परिषद 1982-1985
• विधान सभा 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996, 2004,
• विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान परिषद 1982-1985
• विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान सभा 1985-1987
केंद्रीय
कैबिनेट मंत्री-
•
1977 में उत्तर प्रदेश सरकार में सहकारिता और पशुपालन मंत्री के रूप
में कार्य किया.
•
1996-1998 में रक्षा मंत्री के पद पर कार्य किया
पुरस्कार
नेताजी
श्री मुलायम सिंह यादव को 28 मई, 2012 को लंदन में ‘अंतर्राष्ट्रीय
जूरी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़
जूरिस्ट की जारी विज्ञप्ति में हाईकोर्ट ऑफ़ लंदन के सेवानिवृत्त न्यायाधीश सर
गाविन लाइटमैन ने बताया था कि श्री यादवजी का इस पुरस्कार के लिये चयन बार और पीठ
की प्रगति में बेझिझक योगदान देना है. उन्होंने कहा कि श्री यादव का विधि और न्याय
क्षेत्र से जुड़े लोगों में भाईचारा पैदा करने में सहयोग दुनियाभर में लाजवाब है.
नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव ने विधि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
समाज में भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करके नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव ने
आम जनता को सहज रूप में न्याहय दिलाने में भी विशेष योगदान रहा है. उन्होंने कई
विधि विश्वजविद्यालयों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है. पुस्तकें-
नेताजी श्री मुलायमसिंह पर कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं. बाल्यकाल से ही नेताजी
श्री मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक विचारों पर प्रखर समाजवादी नेता श्री राम मनोहर
लोहिया के विचारों की अमिट छाप रही है. उनका समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होने
का एक प्रमुख कारण श्री लोहिया हैं. नेता जी को अपने राजनीतिक जीवन के आरंभ से ही ‘चौखंबा’ तथा ‘जन’ जैसे समाचार पत्र के माध्यम से लोहिया को पढ़ने का अवसर मिला. नेताजी श्री
मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री काल में किए गए विकास कार्यों में डॉक्टर लोहिया
के विचारों की स्पष्ट झलक मिलती है.
नेताजी
श्री मुलायम सिंह यादव के अनुसार हमारे समाज के प्रमुख विभागों जैसे ज्ञान, तकनीकी प्रशासन एवं राजनीति में कुछ ही जातियों का
आधिपत्य है. उनकी तुलना में कुछ ऐसी जाति हैं, जिनकी संख्या
भारत की 70 से 80% हैं और जो हजारों
वर्षों से शोषित जीवन जी रही है, यह चक्र तब ही टूटेगा,
जब इन 80% लोगों को ज्ञान और तकनीक के क्षेत्र
में अपनी प्रतिभा को प्रकट करने का अवसर मिलेगा. यदि उन्हें अवसर सहज रूप में मिला
होता तो आज ऐसा ही उत्पन्न नहीं होती. डॉक्टर लोहिया के ‘जाति
तोड़ो’ से प्रेरणा पाकर विशेष अवसर का सिद्धांत अस्तित्व में
आया. इसके पीछे यह था कि समाज का 30% से 40% में पूर्ण विकसित सामाजिक वर्ग है. वह नैतिकता के आधार पर स्वेच्छा से पीछे
आए और 60% दबी कुचली-दलित और पिछड़ी जातियों को जिनमें
महिलाएं भी शामिल हैं, को अपना सहयोग लेकर आगे बढ़ाएं. किंतु
दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका. परिणाम यह हुआ कि समाज अप्रत्यक्ष रूप से दो वर्गों
में बट गया. पहला वह जो मानसिक श्रम से आजीविका कमाता था और दूसरा वह जो शारिरिक
श्रम से आजीविका कमाता था. इसके साथ ही इन वर्गों में कार्यों के अनुरूप ही उन
दोनों के बीच संवाद और संपर्क भी उसी अनुपात में ऊंच-नीच के भाव वाला बना रहा.
हजारों साल तक चली इस परंपरा ने एक वर्ग के व्यक्तित्व तथा मानसिक विकास के स्तर
को उच्चता प्रदान कर दी तो दूसरे वर्ग को वंचित और दलित-पिछड़ा बनाये रखा.
1990 में मंडल आयोग की केवल दो अनुशंसाओं को ही लागु करने का काम किया गया.
नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव ने अपने शासनकाल में उपेक्षित वर्गों को विकास के
मार्ग पर लाने के लिए आरक्षण के माध्यम से विशेष अवसर सृजित किए. नेता जी की सरकार
ने पिछड़ों को 27%, दलितों को 21% तथा
अनुसूचित जनजातियों को 2% आरक्षण की व्यवस्था की. भारत के
तथाकथित रुढ़िवादी बुद्धिजीवियों का मानना है कि पहले दलित व पिछड़ों को योग्य बनाओ
और फिर उनको शासन-प्रशासन में हिस्सेदारों दो. नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव का
मानना था कि पहले दलित-पिछडो-अल्पसंख्यक-गरीबों को कुर्सी दो, योग्यता काम करते-करते उनमें अपने आप आ जायेगी. लोहियाजी ने
कहा था कि जब तक दलित-पिछड़े
लोगों को कलम वाला काम नहीं मिलेगा,
तब तक उनके दिमाग की जंग नहीं छूटेगी. 4000 वर्ष
का पुराना संस्कार बिना सहारा दिए दूर नहीं होगा. छोटी जाति के लोगों को सहारा
देकर उस जगह पर बैठाया जाए और चाहे वह नालायक हो तब भी.