नेताजी मुलायमसिंह यादव
उत्तर प्रदेश अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक
एवं सामाजिक दृष्टि से विशेष स्थान रखता है. अपने अमूल्य धरोहर क्षेत्रफल की
दृष्टि से समूचे देश में उत्तर प्रदेश का पांचवा स्थान है. प्राकृतिक एवं खनिज
संपदा से परिपूर्ण इस प्रदेश की ज्यादातर अर्थव्यवस्था उस समय कृषि एवं उद्योग पर
निर्भर थी. औद्योगिक नीति किसी भी देश प्रदेश का औद्योगिक दस्तावेज होता है. जिससे औद्योगिक विकास हेतु सुविचार एक एवं उपयुक्त व रचना का समावेश होता
है. इसी के माध्यम से औद्योगिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है तथा आवश्यक
एवं व्यवहारिक दिशा निर्देश दिए जाते हैं. किसी भी प्रदेश के आर्थिक विकास में उस
प्रदेश की औद्योगिक नीति का प्रमुख योगदान होता है. प्रदेश के मुख्यमंत्री इस
प्रकार की औद्योगिक नीति तैयार कर आते हैं. जिससे प्रदेश में व्यापार को फलने-फूलने
का अवसर प्राप्त हो तथा बाहर से आए हुए व्यापारी भी पैसे और तकनीक लगाने हेतु
आकर्षित हो सके. क्योंकि यही उद्योग एवं निवेश आगे चलकर प्रदेश सरकार की आय का
मुख्य स्रोत बनते हैं.
नेताजी की सरकार ने अपनी नई औद्योगिक नीति के
मूलभूत उद्देश्य के रूप में कृषि व्यवसाय व उद्योग के समन्वित विकास के आधार पर
प्रदेश का आर्थिक, प्राकृतिक संसाधनों एवं अनुकूल परिस्थितियों का सर्वोत्तम उपयोग
करते हुए संतुलित क्षेत्रीय विकास के आधार पर प्रदेश का तीव्र औद्योगिक विकास करने
पर बल दिया था. नेताजी द्वारा निजी क्षेत्र की इकाइयों में पिछड़े एवं दुर्बल वर्ग
के व्यक्तियों को भी रोजगार उपलब्ध कराए जाने से सम्बंधित विशेष रियायत देने की भी
व्यवस्था की गई थी.
नेताजी की सरकार ने औद्योगिक विकास हेतु अपनी
विशिष्ट औद्योगिक नीति घोषित की थी. औद्योगिक नीति एक विशिष्ट औद्योगिक दस्तावेज
होता है, जिससे औद्योगिक विकास हेतु सुविचार एवं उपयुक्त नीतियों का समावेश होता
है और उसी के माध्यम से औद्योगिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है. नेताजी
श्री मुलायम सिंह यादव की सरकार द्वारा उद्योगों के लिए किए गए काम को तीन हिस्सों
में बांटा जा सकता है.
नेताजी श्री मुलायमसिंह यादव ने
अपने कार्यकाल में उद्योगों को बड़े स्तर पर सुविधाएं प्रदान की थी. जिससे भारी
पैमाने पर उत्तर प्रदेश में बड़े उद्योगों के साथ लघु उद्योग तथा कुटीर उद्योगों
की प्रगति के लिए विशेष प्रयास किए गए. नेता जी के अनुसार निश्चय ही बड़े उद्योगों
को सुविधा प्रदान की जानी चाहिए, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि लघु एवं कुटीर
उद्योगों को पीछे छोड़ दिया जाए बल्कि उन्हें तो ज्यादा वरीयता दी जानी चाहिए.
क्योंकि यह बेरोजगारी से लड़ने के लिए एक अचूक हथियार है तथा इनकी स्थापना कहीं से
भी कम पूंजी लगाकर आसानी से की जा सकती है. आज हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ
प्रतिस्पर्धा लड़ते-लड़ते लघु एवं कुटीर उद्योगों को भुला बैठे हैं. बढ़ती हुई
बेरोजगारी का एक बड़ा कारण यह भी है.