बढ़ता वायु प्रदूषण और स्वास्थ सम्बन्धी समस्याऐं
मनुष्य ने जैसे-जैसे वैज्ञानिक उन्नति की है उसने अपने भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए अनेक छोटे-बड़े कारखाने व उद्योगों का विकास किया है। कारखानों से निकलने वाला धुँआ दूर-दूर तक के वातावरण को दूषित कर रहा है जिससे साँस व फेफड़ों के रोग पनपते हैं। आँकड़ों के मुताबिक ‘‘भारत में प्रदूषण से हर साल तेरह लाख लोगों की मृत्यु होती है। 2010 के बाद से श्वॉस सम्बन्धी बीमारियों से ग्रस्त होने वाले लोगों की संख्या में 30 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है। वायु प्रदूषण से समय-पूर्व मौत का शिकार हो जाने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से दिल्ली जल्द ही विश्व में प्रथम स्थान पर जा पहुँचेगी।
बीते दिनों में दिल्ली की वायु बीजिंग की वायु से डेढ़ गुना ज्यादा खराब हो गई है। फिर भी दिल्लीवासी कार पुलिंग और उपयोग में लाये जा रहे वाहनों की संख्या में कमी को लेकर चिन्तातुर है, मुसीबत का सबब बने वायु प्रदूषण के स्तर की उन्हें कोई चिन्ता नहीं है। दिल्ली में हर दिन चौदह सौ नये वाहन सड़क पर उतर जाते हैं जो वायु प्रदूषण को बढ़ाने में अहम् योगदान दे रहे हैं। आये दिन सड़कों पर जाम लगा रहता है, यह भी वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है। आई0आई0टी0 कानपुर द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक शहर में ट्रकों से फैलने वाले प्रदूषण में 24-25 प्रतिशत का हिस्सा होता है, दोपहियों का 18 प्रतिशत तथा यात्री कारों का हिस्सा 14-15ः रहता है।
प्रदूषण फैलने के स्रोत उद्योग और वाहनों से कहीं आगे तक फैले हुये हैं। हर साल जाड़ों के मौसम में पंजाब व हरियाणा में करीबन 500 मिलियन टन कृषि उप-उत्पाद या अवशिष्ट जलाये जाते हैं, इससे भी वायु प्रदूषण फैल रहा है। मन की बात में बात करते हुये माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों से आग्रह किया था कि वे अपनी फसलों के अवशिष्टों को न जलाये क्योंकि ऐसा करके वे वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। परन्तु अब भी किसान कृषि अपशिष्टों को जला रहे हैं। इस जलावन गतिविधि पर लगाम लगाने के मद्देनजर कानून कमजोर हैं। उन्हें लागू भी आधे-अधूरे अन्दाज में किया जाता है।
बिगड़ते प्रदूषण और उसके स्पष्ट कारणों की जानकारी होने के बावजूद विनिर्माता नियम-विनियमों की अवहेलना करते रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकार दोनों को फैसला करना ही होगा कि उन्हें किनके हितों का संरक्षण करना है उद्योगपतियों या नागरिकों के। सख्त कानून बनाये जाना और उन्हें लागू किया जाना कोई मुश्किल काम नहीं है।
मेक इन इण्डिया की सफलता के लिए एक समर्थ और साक्ष्य-आधारित पर्यावरण नीति होना जरूरी है ताकि बेतरतीबी से होते औद्योगिक विस्तार के फायदों से उपर समाज के कल्याण को तरजीह मिल सके। जीवन-स्तर ऊँचा होना आवश्यक है, लेकिन ये इस तरह से बढ़े कि पर्यावरण व सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रतिकुल प्रभाव न पड़ सके।
प्रदूषण के बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी वह प्रतिष्ठा न रह पायेगी जिसके बल पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आता है। उद्योगों से होने वाले प्रदूषण में कमी लाने, वाहनों की संख्या घटाने का प्रयास किया जाना कोई आसान काम नहीं है और न ही एक मात्र विकल्प, लेकिन इन्हें न आजमाया जाना भी हमारी बड़ी लापरवाही है। प्रदूषण की रोकथाम तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सबसे बेहतर उपाय है कि पर्यावरण संबंधी पारंपरिक