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प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों के सहारे बीजेपी का शिक्षक सम्मान समारोह और बंधुआ मजदूर प्राइवेट शिक्षक! teacher honor ceremony and bonded labor private teacher with the help of private school managers!



       पिछले कई दिनों वर्षों से बीजेपी -और उसके कई अनुषांगिक संगठन शिक्षक सम्मान समारोह आयोजित करने में लगे हुए हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि इनका शिक्षकों के प्रति किसी तरह का कोई सम्मान जमीन पर दिखाई नहीं देता है. पिछले डेढ़ साल से कोरोना और दूसरी समस्याओं से स्कूल बंद है. जिसके कारण प्राइवेट स्कूल के शिक्षक वेतन और अन्य जरूरी सुविधाओं से महरूम हैं. निजी या प्राइवेट स्कूल प्रबंधक अपने यहां शिक्षकों को वेतन देने में नाकाम रहे हैं. वहीं बीजेपी की सरकार अभी तक उत्तर प्रदेश में निजी स्कूल शिक्षकों को कोई चवन्नी आवंटित करने में नाकाम रही है. प्राइवेट स्कूल के प्रबंधकों सम्मान समारोह में अपने स्कूल के प्राइवेट शिक्षकों को बंधुआ मजदूर की तरह इकट्ठा करके ही खुस हो गए. क्या किसी व्यक्ति को इस तरह के राजनीतिक कार्यक्रम के लिए मजबूर करना उचित है? ऐसे माहौल में पिछले डेढ़ साल से जो समय बीता है. उससे कई सवाल उभरते हैं-

 

1.  क्या प्राइवेट शिक्षक अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से नहीं गुजर रहें हैं?

2.  क्या शिक्षक अपने दायित्वों के निर्वहन करने के लिए आवश्यक संसाधनों से खुद को मजबूर नहीं पा रहें हैं?

3.  क्या प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों ने अपने स्कूल से आधे से ज्यादा शिक्षकों को बाहर नहीं किया है?

4.  क्या प्राइवेट स्कूल शिक्षकों को उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को वित्तीय सहायता देनी चाहिए?

5.  क्या प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों की कोई जवाबदेही है भी या नहीं?

6.  क्या प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों ने बीजेपी की केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से कोई वित्तीय सहायता प्राप्त करने की मांग की या सिर्फ इवेंट मेनेजमेंट करने में खुद को खपा दिया?

7.  क्या बीजेपी की उत्तर प्रदेश सरकार को प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को बचाने के लिए स्पेशल बजट आवंटित नहीं करना चाहिए?

8.  क्या शिक्षक सम्मान समारोह जैसे हवा-हवाई इवेंट मेनेजमेंट करने से प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों के बच्चों के भरण-पोषण का काम हो जाएगा?

9.  आखिर बीजेपी की केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को बर्बाद करने में प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों के साथ सांठ-गाँठ में क्यों लगी है?

 

 लेकिन इसके बावजूद भी बीजेपी और उसके नेता इवेंट मैनेजमेंट में लगे हुए हैं. क्या यह इवेंट मैनेजमेंट प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों के बच्चों को उनके पेट तक भोजन और अन्य जरूरी सामान उपलब्ध करा पा रहे हैं? जो बुरे हालात है, इन हालातों में क्या शिक्षक अपने आप को बेहतर महसूस कर रहा है? लेकिन इन सबके बावजूद बीजेपी की सरकार ने अपनी नाकामियों को ढकने के लिए जिस तरह का माहौल पैदा किया है, उस माहौल में प्राइवेट स्कूल शिक्षकों को अपने दायित्व निर्वहन करने और अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता है, क्या वह मिल रही है? इस बारे में बीजेपी-संघी कोई भी बात करने के लिए तैयार नहीं है. उत्तर प्रदेश की सरकार सिवाय भाषण और इवेंट मैनेजमेंट के कोई दूसरा काम करने में अक्षम रही है. वहा हर जगह इवेंट मेनेजमेंट करके खानापूर्ति करने में लगी रही है.  लगातार उन चीजों को किया जा रहा है जिन से लोग परेशान हो. क्या इस तरह के सम्मान देने से शिक्षकों को कुछ सहायता मिल सकती है?

       जिला स्तर पर कोई भी यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि कितने शिक्षकों को पूरी तन्खवाह मिली है, कितने शिक्षकों को 50% तन्खवाह मिली है और कितने शिक्षकों को स्कूलों से बाहर कर दिया गया है? और उनको उनके बुरे हालात पर छोड़ दिया गया है. इस बारे में कोई देखरेख करने के लिए या कोई किसी तरह का तंत्र पूरी तरह से गायब है. इन बुरे हालातों में लग सकता है कि जो कुछ हो रहा है, वह बहुत ही निम्न स्तर का कुछ हो रहा है.  शिक्षकों के समक्ष खड़े इन सब संकटों पर विचार करने के बाद यह दिखाई पड़ता है कि बीजेपी-संघ और प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों को शिक्षक सम्मान समारोह का ड्रामा करके सिर्फ और सिर्फ इवेंट मैनेजमेंट में लगे हुए हैं. ये सिर्फ शिक्षकों का अपमान कर रहे हैं. और जिस सम्मान पत्र को उपलब्ध करा रहे हैं, उस सम्मान पत्र से बाजार में एक समय का खाना भी उपलब्ध नहीं हो सकता है. प्राइवेट शिक्षक अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और उस दौर से निपटने के लिए उसे आर्थिक और वित्तीय सहायता चाहिए, लेकिन इस चुनौती से निपटने वाले मामले में बीजेपी-संघ सरकार और उसके शिक्षक सम्मान समारोह के आयोजक ‘प्राइवेट स्कूल प्रबंधक’ पूरी तरह से नाकाम रहे. प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों के संकट से निपटने में भाजपा सरकार और प्राइवेट स्कूल प्रबंधक नाकाम रहें हैं. देर-सबेर इन सभी सवालों के जवाब देने ही होंगे.

 

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